उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की बड़ौत तहसीलका एक गांव है सिनौली। 200 में हुई खुदाई में यहां से सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित 125 कब्रें पाई गईं थी। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल राखीगढ़ी, कालीबंगा और लोथल में खुदाई के दौरान भी कंकाल मिल चुके हैं। यहां पर जो कब्रें मिली है उन्हें 2200-1800 ईसा पूर्व का बताया जा रहा है।
खास बात यह है कि यहां पर खुदाई में धरती के नीचे से प्राचीन भारत के रथ और हथियार भी पाए गए हैं। यहां सिर्फ खेतों में ही दुर्लभ पुरावशेष दफन नहीं हैं, बल्कि गांव की गलियों और मोहल्लों में स्थित घर-घर के नीचे प्राचीन भारत का इतिहास दबा हुआ है। यहां पर एएसआइ की टीम ने लगभग 15-16 फुट खोदाई की तो जमीन से नर कंकाल, तांबे के दो कड़े, तांबे की म्यान, स्वर्णाभूषण, मनके, मिट्टी के बर्तन, बड़े मटके, खंडहरनुमा रसोई निकली है। सभी को महाभारत काल का माना जा रहा है।
आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों की नई खोज से यह पता चला है कि सिंधुघाटी की सभ्यता लगभग 6000 ईसा पूर्व अर्थात आज से 8000 वर्ष पुरानी मानी गई है। सिंधु घाटी में ऐसी कम से कम आठ प्रमुख जगहें हैं जहां संपूर्ण नगर खोज लिए गए हैं। जिनके नाम हड़प्पा, मोहनजोदेड़ों, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ है।
अंग्रेजों की खुदाई से माना जाता था कि सिंधु सभ्यता के नगरों की 2600 ईसा पूर्व स्थापना हुई थी। इस सोच को गुजरात के धोलावीरा, हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी और उत्तर प्रदेश के सिनौली में पाए गए पुरावशेष से बदल कर रख दिया। भगवान श्रीराम का काल 5114 ईसा पूर्व का काल माना जाता है जबकि श्रीकृष्ण का काल 3228 ईसा पूर्व का माना गया है। नई पुरातात्विक खोज से पता चलता है कि अब तक भारत का जो इतिहास पढ़ाया या बताया गया था वह सच नहीं था। सच कुछ और है और जिसका सामने आना अभी बाकी है।