क्या है सिंधु जल समझौता, क्या भारत रोक सकता है पाकिस्तान का पानी?

WD Feature Desk

सोमवार, 5 मई 2025 (13:49 IST)
Sindhu river water treaty: कश्मीर के पहलगाम में हुए दुखद आतंकी हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को स्थगित करने का एक बड़ा कदम उठाया है। यह संधि, जो दशकों से दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का आधार रही है, अब सवालों के घेरे में है। आखिर यह सिंधु जल संधि क्या है? कब यह समझौता हुआ? और क्या भारत सच में पाकिस्तान में सिंधु नदी का पानी रोक सकता है? आइए, इन महत्वपूर्ण पहलुओं पर एक नजर डालते हैं।

सिंधु जल संधि क्या है और कब हुई?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के उपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण समझौता है। यह संधि 19 सितंबर, 1960 को कराची में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित हुई थी।

इस संधि के तहत, सिंधु नदी बेसिन की छह नदियों - सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिमी नदियाँ) और रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ) - के पानी का बंटवारा किया गया था। संधि के अनुसार, पूर्वी नदियों का लगभग पूरा पानी भारत को आवंटित किया गया, जबकि पश्चिमी नदियों का अधिकांश पानी पाकिस्तान को दिया गया। भारत को पश्चिमी नदियों पर कुछ सीमित उपयोग का अधिकार दिया गया, जैसे कि पनबिजली उत्पादन (रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट) और कृषि के लिए सीमित सिंचाई।

भारत और पाकिस्तान में सिंधु नदी का प्रवाह क्षेत्र:
सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से होता है। यह भारत में जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्रों से बहती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है। पाकिस्तान में यह नदी पंजाब और सिंध प्रांतों से होकर गुजरती है और अंततः अरब सागर में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज हैं, जो ज्यादातर भारत से पाकिस्तान की ओर बहती हैं।

क्या भारत रोक सकता है सिंधु का पानी?
सिंधु जल संधि एक जटिल ढांचा है जो दोनों देशों के अधिकारों और दायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। संधि में पानी के प्रवाह को बाधित करने की अनुमति नहीं है, खासकर पश्चिमी नदियों के मामले में जो मुख्य रूप से पाकिस्तान को आवंटित हैं।

हालांकि, संधि भारत को पश्चिमी नदियों पर पनबिजली परियोजनाएं बनाने की अनुमति देती है, बशर्ते कि इन परियोजनाओं का डिजाइन ऐसा हो कि पाकिस्तान में पानी का प्रवाह अप्रभावित रहे। भारत ने किशनगंगा और रातले जैसी कुछ पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण किया है, जिन पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई है, लेकिन विश्व बैंक ने आम तौर पर भारत के पक्ष में फैसला सुनाया है।

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वर्तमान में, पहलगाम हमले के बाद भारत द्वारा संधि को स्थगित करने का निर्णय एक कूटनीतिक कदम माना जा रहा है। इसका तात्कालिक अर्थ यह हो सकता है कि जल बंटवारे से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान या संधि के तहत स्थापित स्थायी सिंधु आयोग की बैठकें प्रभावित हो सकती हैं।

भौतिक रूप से सिंधु नदी के पानी को पूरी तरह से रोकना भारत के लिए तकनीकी और भू-राजनीतिक रूप से एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। इसके लिए बड़े पैमाने पर जल भंडारण सुविधाओं का निर्माण करना होगा, जो कि एक लंबी और महंगी प्रक्रिया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करके पाकिस्तान को जाने वाले पानी की मात्रा को कुछ हद तक नियंत्रित कर सकता है, खासकर सूखे के मौसम में जब पानी की उपलब्धता कम होती है। हालांकि, पूरी तरह से पानी रोकना संभव नहीं होगा।

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण जल-बंटवारा समझौता है, जो छह दशकों से अधिक समय से कायम है। पहलगाम हमले के बाद भारत का संधि को स्थगित करने का निर्णय द्विपक्षीय संबंधों में एक नया मोड़ लेकर आया है। जबकि भारत के लिए पश्चिमी नदियों के पानी को पूरी तरह से रोकना व्यवहारिक नहीं है, इस कदम से पाकिस्तान पर दबाव जरूर बढ़ेगा। भविष्य में इस संधि का क्या स्वरूप रहेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा, खासकर सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देशों के रुख के संदर्भ में।

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