कुंभ धुल गए मन के मैल

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शाही स्नान में जहाँ दशनाम संन्यासियों की जमात में शामिल नागा संन्यासियों ने स्नान मार्ग में तलवार, लाठी और डंडों से अनेक करतब दिखाए, वहीं घोड़े पर सवार नागाओं ने अपने घोड़े भी खूब दौड़ाए। जमात के आगे और पीछे पुलिस के घुड़सवार थे। नागा घुड़सवारों के बेहतर प्रशिक्षित घोड़ों ने खूब करतब दिखलाए। इससे उपस्थित श्रद्धालुओं और आम दर्शकों ने दाँतों तले अंगुली दबा ली।

शाही स्नान में जहाँ संन्यासियों, नागा साधुओं, महंतों, अवधूतों की उपस्थिति के बीच माई बाड़े की साध्वियों ने भी शाही स्नान किया। इनके लिए रामलीला मैदान में अलग तंबुओं की व्यवस्था की गई है। साध्वी उमा गिरी की अगुवाई में सौ से अधिक साध्वियों ने शाही स्नान किया। भक्तजनों ने इनके ऊपर पुष्पवर्षा भी की। हाल ही में महामंडलेश्वर बनी दो साध्वियों सहित दो अन्य विदेशी साधुओं ने भी शाही स्नान में भागीदारी की।

कुंभ के शाही स्नान के दिन माहौल कुछ इस कदर भक्तिमय हो गया कि दिल्ली से आई एक महिला ने तो साध्वी बनने की जिद ही पकड़ ली पर किसी तरह परिजनों ने उसे समझा-बुझाकर घर वापसी को राजी किया। शाही स्नान के लिए महाशिवरात्रि को ब्रह्मकुंड घाट आम श्रद्धालुओं के लिए प्रातः आठ बजे तक ही खुला रखा गया तो लोगों ने कंपकंपाती ठंड में भी रात से ही स्नान शुरू कर दिया।

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शाही स्नान के अवसर पर यहाँ उपस्थित देशी-विदेशी श्रद्धालु गदगद और भाव विभोर दिखे।

विभिन्न अखाड़ों के साधुओं के लिए तय समय के बावजूद पहले शाही स्नान में जूना अखाड़े को स्नान निपटाने में अधिक समय लगा। इस दौरान निरंजनी अखाड़े के साधु-संत गंगा नहाने निकल पड़े। ऐसे में निरंजनी अखाड़े की शाही सवारी आधा घंटा लालतारों पुल पर रोकनी पड़ी। महाशिवरात्रि और शाही स्नान के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर शुक्रवार की सुबह प्रशासन ने हर की पौड़ी के सभी मंदिर बंद करवा दिए। इस कारण आक्रोश से भरे पंडों ने सायंकालीन गंगा आरती से खुद को अलग रखा।

हिंदू संस्कृति के रक्षक अखाड़ों को धर्म-कर्म एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध तो माना ही जाता है पर शाही स्नान के दौरान इनके स्वर्णजटित सिंहासनों एवं पालकियों की सवारी ने इनका राजसी वैभव भी खूब दिखाया। सोने-चाँदी से जड़े तीस से अधिक पालकियों पर विराजमान महामंडलेश्वरों का वैभव देखते ही बन रहा था। देवताओं की डोलियों को भी चाँदी के छत्र से ढँककर स्नान के लिए घाट तक लाया गया। जूना अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय, अग्नि अखाड़े की गायत्री देवी, निरंजनी अखाड़े के भगवान कार्तिकेय, आनंद अखाड़े के सूर्य नारायण, महानिर्वाणी के ऋषि कपिल मुनि एवं अटल अखाड़े के आदि गणेश ने अखाड़ों के साथ गंगा स्नान कर माहौल को भक्ति रंग में रंग डाला। दूसरे शाही स्नान का भी संयोग दुर्लभ ही है।

इस दिन सोमवती अमावस्या होने से संभावना है कि स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ पहले शाही स्नान के मुकाबले अधिक रहेगी। गनीमत है कि इस अवसर पर व्यवस्था और सुरक्षा इंतजामों के लिए अभी प्रशासन के पास पर्याप्त समय है। इधर गंगा द्वीपों पर द्वितीय शाही स्नान में भाग लेने के लिए आने वाले बैरागियों के लिए तंबू नगर बसाए जा रहे हैं। वहीं गंगा द्वीपों से सटे वन क्षेत्रों में बैरागियों के लिए पर्णकुटी छंवाई जा रही है।

साधु-संन्यासी कुंभ में मात्र स्नान करने और धूनी रमाने ही नहीं आते बल्कि कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करना भी इनका उद्देश्य होता है। इसके लिए वे निर्जन जलधाराओं और निर्जन स्थान पर रहने की चाहत रखते हैं पर साथ ही इनमें कुंभ नगरी से जुड़कर रहने की चाहत भी रहती है।

कुंभ में नए संन्यासी बनाने का क्रम भी तेजी से चलता है। इनको संन्यासियों की मर्यादा एवं परंपरा समझाने के लिए प्रशिक्षण देने में अखाड़ों के अलख दरबार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये संन्यासियों को अहंकार मुक्त करने की चेष्टा करते हैं। उन्हें निर्मल बनाते हैं। उनका मानमर्दन कर उन्हें भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ाते हैं। जूना अखाड़े के अलखिया दरबार के इन संन्यासियों की टोली प्रतिदिन भिक्षाटन के लिए छावनी में ठहरे हुए संन्यासियों के सम्मुख पहुंचती है और प्राप्त सामग्री से शिव-भंडार चलाती है। जोगिया वेषभूषा से सुसज्जित ये अलख साधु शिव व काली का खप्पर हाथ में लिए भिक्षाटन करते हैं।

कुंभ में जहाँ शाही स्नान का आकर्षण प्रमुख है, वहीं इस पवित्र भूमि में कुंभ के अवसर पर कथावाचकों की उपस्थिति भी माहौल को बेहद आध्यात्मिक रंग-रूप देने में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रही है। उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्ण कॉन्ससनेस ने चैतन्य महाप्रभु के 500वें जन्मोत्सव पर हरिद्वार से भी अपना एक केंद्र शुरू किया है। इधर जूना अखाड़ा से जुड़े पायलट बाबा के आश्रम में प्रतिदिन देशी-विदेशी श्रद्धालु पधार रहे हैं और उन्हें संन्यास के लिए प्रेरित करने की प्रक्रिया शुरू है।

पहले नेपाली मूल की साध्वी और रूसी मूल के साधु को महामंडलेश्वर की पदवी से विभूषित किया गया तो अब साठ देशी-विदेशी संन्यासियों को संन्यास की दीक्षा दी गई है। इनमें से पचपन संन्यासी विदेशी मूल के हैं। इन्हें गंगा में पिंडदान कराकर संन्यास की दीक्षा दी जा रही है। इन विदेशियों का संन्यास ग्रहण करना यह दर्शाता है कि इनमें भारतीय धर्म और संस्कृति को समझने की गहरी ललक है। उधर बैरागी अखाड़ों के शहर में आने के बाद माहौल के और अधिक भक्तिमय होने की आशा की जा रही है।

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