तीर्थराज प्रयाग में सभी स्त्रियां चाहे वह सुहागिन हों या विधवा, उन्हें मुंडन कराने का अधिकार दिया गया है। इस मुंडन को शुभ माना जाता है, इसे कराने के लिए प्रयाग में समय या मुहूर्त का विचार नहीं किया जाता। हालांकि जो मुहूर्त देखकर करना चाहते हैं उनके लिए भी यहां जानकारी प्रस्तुत है।
इस मुंडन का एक रूप वेणी दान है। यह दान आमतौर पर दक्षिण भारत और महाराष्ट्र की महिलाएं करती हैं। वेणी दान से पहले वे अपना श्रृंगार करती हैं, वेणीमाधव का पूजन करती हैं और संकल्प लेती है, फिर वे संगम तट पर जाकर अपने केश का तीन अंगुल हिस्सा काटकर वेणीमाधव को समर्पित कर देती हैं।
यह वेणी दान गंगा, यमुना और सरस्वती को प्रसन्न करने वाला माना जाता है। भगवान वेणीमाधव ने स्वयं कहा था कि जो स्त्रियां इस पुण्य धारा में अपनी वेणी (चोटी) का दान करेंगी, उन्हें सन्तान, सम्पत्ति, सौभाग्य और आयु प्राप्त होगी। उन्हें पति के साथ स्वर्ग का सुख मिलेगा।
माधव की कृपा और उनका प्रेम चाहने वाली हर स्त्री को यह दान करना चाहिए। प्रयाग माहात्म्य में ऐसा वर्णन आया है कि तीनों लोक में रहने वाले सभी देवता, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व अपनी पत्नियों के साथ इस तीर्थ में आए थे।
उन्होंने ब्राह्मणों को दान किया था और वेणी दान किया था। सबसे पहले सावित्री ने ब्रह्मा को तीन अंगुलियों के बराबर अपनी वेणी के बाल काट कर दिए। उन्होंने इसे पवित्र जल में समर्पित कर दिया और अपने सौभाग्य का प्रमाण फूल की माला में वेणीमाधव को भेंट कर दी।
वेणी दान के लिए पहले सोलह उपचारों से वेणीमाधव का पूजन करना चाहिए, फिर अंजुली में चोटी रखकर यह मंत्र पढ़ना चाहिए-
इस मंत्र से वेणी को जल में छोड़ देना चाहिए, फिर पति की इच्छा के अनुसार या तो पूरा मुंडन कराना चाहिए या नहीं कराना चाहिए। शरीर धारियों के सभी पाप उसके बालों में छिपकर रहते हैं, इसलिए उन्हें कटवा देना चाहिए। अन्य पुराणों में सभी बाल काटने की मनाही की गई है, लेकिन प्रयाग में इसकी मनाही नहीं है।
वेणी दान के बारे में अनेक मत हैं। इनके अनुसार दो अंगुल, तीन अंगुल, चार अंगुल, छह अंगुल या पुरा बाल कटवा देना चाहिए। यह दान इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने भी किया था। प्रयाग पहुंचने के दूसरे या तीसरे दिन वेणी दान किया जाता है।
वैसे वेणी दान के लिए शुक्ल पक्ष की उचित तिथि और वार का विचार किया जाता है। उस दिन उत्तम नक्षत्र, करण और योग होना चाहिए। चंद्रमा भी अनुकूल होना चाहिए। गाजे-बाजे के साथ त्रिवेणी तट पर जाना चाहिए। पति को भी साथ ले जाना चाहिए।
वेणी दान से पहले उचित संकल्प करना चाहिए। नए कपड़े पहनकर उत्तर की ओर मुंह करके संकल्प लेना चाहिए। संकल्प करने के बाद शरीर में हल्दी लगानी चाहिए फिर संगम में स्नान करना चाहिए। स्नान के समय चोटी बंधी होनी चाहिए, स्नान के बाद किनारे आकर आसन पर बैठना चाहिए।
पूरब या उत्तर की ओर मुंह करके पति से आज्ञा लेकर वेणी दान करना चाहिए। पत्नी की चोटी का छोर पति को पकड़ना चाहिए और उसमें मांगलिक द्रव्य बांध देना चाहिए। इस चोटी को संकल्प के अनुसार काटकर पत्नी स्वयं जल में प्रवाहित करें। इसके बाद पति-पत्नी को वेणीमाधव का पूजन और दान वगैरह करना चाहिए। - वेबदुनिया संदर्भ