शास्त्र और शस्त्र से लैस नागा साधु बाबा

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विभिन्न अखाडों में संस्कार लेने वाले नागा साधुओं को शास्त्र ही नहीं बल्कि शस्त्र की भी दीक्षा लेनी होती है और उन्हें कुंभ में नागा की उपाधि से विभूषित किया जाता है। उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद के गंगा-यमुना और विलुप्त सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ में भी इस बार संस्कार पाए कुछ साधुओं को नागा की उपाधि दी जाएगी।

साधुओं को कई परीक्षा से गुजरने के बाद नागा का पद दिया जाता है। यह पद पाना आसान नहीं होता। इसके लिए कठिन कर्म और तपस्या से गुजरना होता है। आमतौर पर कुंभ में ही परीक्षा में खरा उतरने वाले साधुओं को नागा की उपाधि दी जाती है। इसमें शास्त्र के साथ शस्त्र की दीक्षा पहली अनिवार्य शर्त होती है।

नागा साधुओं को कई जिम्मेदारियां भी निभानी होती है। उन्हें परीक्षा के सात चक्रों से गुजरना होता है। नागा का पद पा चुके साधु को एक सर्टिफिकेट भी दिया जाता है ताकि वह संत समाज मे उसे जरूरत होने पर दिखा सके।

चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा तथा नासिक मे उपाधि पाने वाले को खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।

पंच दशनाम जूना अखाड़ा के नागा साधु रुद्रगिरि कहते हैं कि नागा का संस्कार लेना और उसका पालन करना आसान नहीं है। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन है। नागा बनने में दो से दस साल तक लग जाते हैं। यह साधुओं की सेवा भाव पर निर्भर होता है कि वह कितना जल्द नागा बनता है।

नागा बनने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।

बाबा रुद्रगिरि ने कहा कि नागा साधुओं को सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। ब्रह्मचारी बनने में कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है। इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है। बाद की परीक्षा यज्ञोपवीत और पिंडदान की होती है जिसमें अब तक के जीवन को मृत मान लिया जाता है। नागा साधु अपना पिंडदान खुद करता है।

उन्होने कहा कि अंतिम परीक्षा दिगम्बर और श्रीदिगम्बर की होती है। जरूरी नहीं कि सभी नागा निर्वस्त्र रहे। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है। श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है।

नागाओं का श्रृंगार भस्म होता है। आमतौर पर नागा भस्म के लिए मुर्दे की राख तथा हवन की राख का इस्तेमाल करते हैं। सभी अखाड़े नागा साधु नहीं बनाते। देश के कुल तेरह अखाड़े में सात को नागा साधु बनाने का अधिकार है।
श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा, आहवान अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा तथा अटल अखाड़ा को ही नागा साधु बनाने का अधिकार है। (वार्ता)

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