एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ जैसे धार्मिक समागमों में भाग लेने के कारण ‘समान पहचान’ तथा ‘प्रवृत्ति में प्रतिस्पर्धा के बदले सहयोग की भावना’ आने से लोगों में तंदुरुस्ती की भावना और सुख की अनुभूति बढ़ जाती है।
यह निष्कर्ष भारत और ब्रिटेन के नौ विश्वविद्यालयों के मनोचिकित्सकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आए हैं। अध्ययन में पांच भारतीय विश्वविद्यालयों एवं चार ब्रिटिश विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक शामिल हैं।
अध्ययन में दावा किया गया है कि यह अभी तक की संभवत: सबसे बड़ी ब्रिटिश भारतीय सामाजिक विज्ञान परियोजना है। इसके निष्कर्ष को आज मीडिया से साझा किया गया।
अध्ययन के बारे में जानकारी देते हुए डंडी विश्वविद्यालय के निक हॉप्किंस ने कहा कि हमने गंगा-यमुना नदी के तट पर होने वाले वार्षिक माघ मेले में श्रद्धालुओं द्वारा किए जाने वाले तप कल्पवास का अध्ययन किया है। यह भले ही कुंभ जितना विशाल न हो, लेकिन इसमें सैकड़ों से हजारों लोग भाग लेते हैं।
सेंट एंड्रयू विश्वविद्यालय के स्टीफन रिएचर ने कहा कि एक माह तक कठोर एवं बार-बार दोहराई जाने वाली दिनचर्या के कारण कल्पवासियों के रवैए में अस्थायी तौर पर ही सही, बदलाव आता है।
उनका रवैया प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोगात्मक हो जाता है। यह रवैया रेलवे स्टेशन की भीड़ से ठीक विपरीत होता है जहां हर कोई अपनी जगह सुरक्षित करने की फिराक में होता है और हर किसी को धक्का देने को तैयार रहता है।
इस तरह के समागमों में भीड़ के अनूठे व्यवहार के मूल में यह बात होती है कि वे अन्य लोगों के बारे में ऐसा सोचते हैं कि वे भी हममें से एक हैं। किसी दूसरे व्यक्ति को अपने में से एक मान लेने की सोच से ही अन्य के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव आ जाता है, भले ही वह पूरी तरह से अपरिचित हो।
रिएचर ने कहा कि यही बात संभवत: इस तथ्य का स्पष्टीकरण है कि इस तरह के समागमों से जुड़ी साफ-सफाई की स्थिति और ध्वनि प्रदूषण के बावजूद तीर्थयात्रियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि लॉसेंट जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने अपने कई आलेखों में इस तरह के समागमों को स्वास्थ्य के लिए खराब बताया है।
उन्होंने कहा कि निस्संदेह मेले के कारण स्वास्थ्य के लिए वास्तविक जोखिम उत्पन्न होते हैं और उनकी अनदेखी करना गलत होगा, लेकिन यह कहानी का केवल एक पक्ष है। निश्चित तौर पर हमारे अध्ययन का यह सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकला कि मेले में भागीदारी करने से लोगों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है।
बेलफास्ट के क्वींस विश्वविद्यालय के क्लिफफोर्ड स्टीवनसन ने कहा कि मेले से हम मानव की तंदुरुस्ती के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। (भाषा)