कुंभ में कल्पवास से होता है कायाकल्प

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गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम पर आयोजित कुंभ मेले में वैश्विक स्वरूप देखने को मिल रहा है। कुंभ क्षेत्र में जहां एक तरफ विदेशी श्रद्धालुओं का रेला लगा है तो दूसरी तरफ नागा संन्यासी भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं।

लेकिन इन सब चकाचौंध से दूर कुछ ऐसे भी कैंप लगे हैं जिनमें देश के कोने-कोने से लोग आकर कल्पवास कर रहे हैं। इन कल्पवासियों की आस्था कुंभ मेले की रीढ़ बनी हुई है।

कल्पवास करने आए श्रद्धालु पूरे कुंभ अवधि तक गंगा किनारे रहकर नियमित स्नान व पूजाकर पुण्य का लाभ उठा रहे हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तरांचल, राजस्थान सहित कई अन्य राज्यों से आए कल्पवासियों से पूरा गंगा किनारा भरा पड़ा है।

न्यूनतम सुविधाओं में कल्पवासी का जीवन जी रहे अधिकतर कल्पवासियों की उम्र 50 वर्ष से ऊपर हैं। कुछ ऐसे भी कल्पवासी हैं जो चार से अधिक बार कुंभ में कल्पवास कर चुके हैं।

ऐसा माना जाता है कि कल्पवास करने से वस्तुतः साधक का कायाकल्प हो जाता है। मनसा, वाचा, कर्मणा व पवित्रता के बिना कल्पवास निश्फल हो जाता है। इसीलिए कल्पवास के लिए 21 कठोर नियम बताए गया है। जिनमें झूठ न बोलना, हिंसा क्रोध न करना, दया-दान करना, नशा न करना, सूर्योदय से पूर्व उठना, नित्य प्रात: संगम स्नान, तीन समय संध्यापूजन, हरिकथा श्रवण व एक समय भोजन व भूमि पर शयन मुख्‍य है।

सेक्टर 6 के कैंप में बिहार के सासाराम से कल्पवास करने आए दीनदयाल तिवारी कहते हैं, यहां आकर मन को शुद्धि मिलती है। भक्ति और आस्था के संगम में नियमित डुबकी लगाने का अपना अलग ही महत्व है। हालांकि कल्पवास की दिनचर्या पारिवारिक दिनचर्या से बिल्कुल अलग है। एक महीने का कल्पवास कोई पिकनिक नहीं बल्कि कठोर तपस्या साधना है।

यहां इस तरह से लाखों लोग कल्पवास के लिए आए हैं। कुछ कल्पवासी अपने पूरे परिवार के साथ भी रह रहे हैं। इनका कहना है कि सेवा और आत्मशुद्धि के लिए इससे अच्छा और कोई अवसर हो ही नहीं सकता। पूरे दो महीने कुंभ में रहते हुए कोशिश है कि अपने सामर्थ के अनुसार लोगों की मदद कर सकें।
- वेबदुनिया

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