आदि शंकराचार्य ने धर्म की पुन: स्थापना की थी। उन्होंने चार धामों पर चार पीठों की स्थापना की और दशनामी संप्रदाय की स्थापना करने के साथ ही ब्रह्म सूत्र का प्रतिपादन किया। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि आदि शंकराचार्यजी का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है। दयानंद सरस्वती जी 141 साल पहले हुए थे। इस वक्त अंग्रेजी वर्ष 2025 चल रहा है और विक्रम संवत 2082 चल रहा है। विक्रम संवत् अंग्रेजी संवत से 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। इस वक्त कलि संवत 5126 चल रहा है। युधिष्ठिर संवत कलि संवत से 38 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। मतलब इस वक्त युधिष्ठिर संवत 5165 चल रहा है।ALSO READ: आद्य शंकराचार्य जयंती : 15 बातें जो उन्हें बनाती है खास
अभिनव शंकराचार्य: 788 ईस्वी में जिन शंकराचार्य का जन्म हुआ था वे अभिनव शंकराचार्य थे। अभिनव शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में हुई थी।
आदि शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां 508 ईस्वी पूर्व हुआ था और वे 34 वर्ष तक ही जीए थे। आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईस्वी पूर्व हुआ था और उन्होंने 474 ईसा पूर्व अपनी देह को त्याग दिया था। अभिनव शंकर की वेशभूषा और उनका जीवन भी लगभग आदि शंकराचार्य की तरह ही था। वे भी मठ के ही आचार्य थे। उन्होंने चिदंबरमवासी श्रीविश्वजी के घर जन्म लिया था। उनको इतिहाकारों ने आदि शंकराचार्य समझ लिया। ये अभिनव शंकराचार्यजी कैलाश में एक गुफा में चले गए थे।
मठों से मिलते हैं सबूत:
1. आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी। इसके बाद पश्चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्ठिर संवत में की थी।
2. इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्ठिर संवत में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के बारे में लिखा जान लेंगे।
शंकराचार्य ने पश्चिम दिशा में 2648 में जो शारदा मठ बनाया गया था उसके इतिहास की किताबों में एक श्लोक लिखा है।
युधिष्ठिरशके 2631 वैशाखशुक्लापंचमी श्री मच्छशंकरावतार:।
अर्थात 2631 युधिष्ठिर संवत में वैशाख शुक्ल पंचमी को आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। यदि हम उपरोक्त के मान से आदि शंकराचार्य के जन्म और मृत्यु को मानते हैं तो भगवान बुद्ध के 100 वर्षों के बाद आदि शंकराचार्य हुए।
विभिन्न मठों द्वारा उनकी जन्मतिथि अलग-अलग बताई जाती है:- द्वारका पीठ: 491 ईसा पूर्व, ज्योतिर्मठ: 485 ईसा पूर्व, जगन्नाथ पुरी पीठ: 484 ईसा पूर्व, श्रृंगेरी पीठ: 483 ईसा पूर्व, कांचीपुरम पीठम: कलि 2593 (509 ईसा पूर्व)।
आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था। शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात कही है। गुरुरत्न मालिका में उनके देह त्याग का उल्लेख मिलता है। केदारनाथ मंदिर के पीछे उनकी समाधी है।
दशनामी संप्रदाय से मिलते हैं सबूत:
शंकराचार्य ने ही हर क्षेत्र के हिन्दुओं को संगठित करने और जातिवाद को समाप्त करने के लिए दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यह दस संप्रदाय निम्न हैं:- 1.गिरि, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। 4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। 9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं। इन्हीं संप्रदाय को आजकल संत संप्रदाय माना जाता है जिनके 13 अखाड़े कुंभ में स्नान करते हैं। सबसे पुराना अखाड़ा आह्वान अखाड़ा है, जिसकी स्थापना 547 ईस्वी में की गई थी। फिर 788 ईस्वी में आदि शंकराचार्य कैसे हो सकते हैं? सोचने वाली बात है।