पढ़ि‍ए, तुलसीदास जी के शि‍क्षाप्रद दोहे

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखे गए दोहे, हर युग, परिस्थति और काल में मनुष्य को जीवन जीने की सीख देते हैं। उनकी रचनाओं का अर्थ जानकर उसे जीवन में उतारकर आगे बढ़ना कठिनाईयों से बचने में मदद करती हैं। आइए जानते हैं तुलसीदास जी के वे दोहे, जो वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षाप्रद हैं - 

 
1 वर्तमान में जहां मनुष्य दूसरे को बुरा बताकर, खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की दौड़ में शामिल है, तब गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया यह दोहा, शि‍क्षा लेने योग्य है। 
 
 तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
  तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
इसमें तुलसी दास जी कहते हैं, कि जो लोग दूसरों की बुराई कर खुद प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, वे खुद अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं। ऐसे व्यक्ति के मुंह पर ऐसी कालिख पुतेगी जो कितना भी कोशिश करे कभी नहीं मिटेगी। मतलब वे अपना यश और प्रतिष्ठा खोकर इस तरह से अपमानित होत हैं, कि कई कोशिशों के बाद भी सम्मान पुन: प्राप्त नहीं कर पाते। 
 
2 समाज में आज ऐसे लोग भी देखे जाते हैं, जि‍नमें किसी भी प्रकार का कोई गुण नहीं होता, लेकिन फिर भी वे पर बेहद अभिमान और अहंकार से भरे होते हैं, और अन्य लोगों को हेय दृष्टी से देखते हैं। उन लोगों को गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित इस दोहे से अवश्य शिक्षा लेनी चाहिए।
 
 तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
   तुलसी जिअत बिडंबना, परिनामहु गत जान।।
अर्थात- तन की सुंदरता, सद्गुण, धन, सम्मान और धर्म आदि के बिना भी जिन्हें अभिमान होता है, ऐसे लोगों का जीवन ही दुविधाओं से भरा होता है, जिसका परिणाम बुरा ही होता है।
  
3  वर्तमान समय में एक कहावत चलती है, कि जो दिखता है, वह बिकता है। ऐसे में तुलसीदास जी ने दिखावे के पीछे भागने वालों के लिए भी अपने इस दोहे में शिक्षा दी है- 
 
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि 
अर्थात - तुलसी दास जी कहते हैं सुंदर आवरण को देख कर केवल मुर्ख ही नहीं बुद्धिमान भी चकमा खा जाते हैं। जैसे मोर की वाणी कितनी मधुर होती हैं लेकिन उसका आहार सांप हैं।
 
4 अपने आसपास ऐसे कई लोग होते हैं, जो अपने गुणों का बखान स्वयं ही करके वाहवाही लूटते दिखाई देते हैं। उनके लिए तुलसीदास की का यह दोहा बेहद शिक्षाप्रद है- 
 सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
 बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ।।
अर्थात - शूरवीर युद्ध में अपना परिचय कर्मों के द्वारा देते हैं। उन्हें खुद का बखान करने की आवश्यकता नहीं होती । जो अपने कौशल या गुणों का बखान खुद अपने शब्दों से करते हैं वे कायर होते हैं। 
 
जो लोग किसी पर दया नहीं करते और अपने अभिमान में डूबे रहते हैं, गोस्वामी तुलसीदास जी ने निम्न लिखित दोहे में बड़ी शिक्षा दी है- 
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान । 
  तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण ।।
तुलसी दास जी कहते हैं, कि धर्म का मूल भाव ही दया है, इसलिए मनुष्य को कभी दया नहीं त्यागनी चाहिए। इसी प्रकार अहम अर्थात अभि‍मान का भाव ही पाप का मूल अर्थात जड़ होती है। 
 
6  जो लोग हमेशा दूसरों ये कठोर या मन दुखाने वाली बातें करते हैं, कभी प्रेम से नहीं बात करते देखे जाते, उनके लिए तुलसीदास जी ने यह शिक्षाप्रद बात कही है-
 तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुंओर ।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।
अर्थात - तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं। मीठे बोल किसी को भी वश में करने का मन्त्र है। इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करें। 
 
 मार खोज लै सौंह करि, करि मत लाज न ग्रास।
  मुए नीच ते मीच बिनु, जे इन के बिस्वास।।
 
अर्थात  ‘‘ निबुर्द्धि मनुष्य ही कपटियों और ढोंगियों का शिकार होते हैं। ऐसे कपटी लोग शपथ लेकर मित्र बनते हैं और फिर मौका मिलते ही वार करते हैं। ऐसे लोगों भगवान का न भगवान का भय न समाज का, अतः उनसे बचना चाहिए।

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