श्री रामकृष्ण परमहंस का असली नाम क्या है? जानिए उनके जीवन की 5 रोचक बातें

WD Feature Desk

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025 (11:47 IST)
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुकुर गांव में एक निर्धन, किंतु धार्मिक परिवार में हुआ था। हुआ था। उनके पिता खुदीराम और मां चंद्रमणि देवी थे। उनके पिता को सपना आया कि भगवान गदाधर (भगवान विष्णु) उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। फिर मां चंद्रमणि देवी को एक शिव मंदिर में पूजा करने के दौरान उनके गर्भ में एक दिव्य प्रकाश के प्रवेश करने का अनुभव हुआ। गवान गदाधर के सपने में आने के कारण बालक का नाम गदाधर पड़ गया। रामकृष्‍ण के दो बड़े बड़े भाइयों के नाम रामकुमार और रामेश्वर थे और बहन का नाम कात्यायनी था।ALSO READ: रामकृष्ण परमहंस जयंती, जानें उनका जीवन, उल्लेखनीय कार्य और प्रेरक विचार
 
1. दिव्य अनुभूति:- कहते हैं कि रामकृष्ण को जब 6 वर्ष की उम्र के थे तब उन्हें एक दिव्य अनुभूति हुई। हुआ यह कि एक दिन प्रातकाल में चावल के खेत की संकरी पगडंडियों पर चावल के मुरमुरे खाते हुए वे टहल रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि पानी से भरे काले बादल आसमान में तैर रहे हैं। ऐसा लग रहा था मानों घनघोर बर्षा होने ही वाली हो। तभी उन्होंने देखा कि सफेद सारसों पक्षियों का एक झुंड बादलों के साथ उड़ रहा है। जल्द दी पूरे आसमान में काली घटा घटा छा गई। यह प्राकृतिक दृश्य इतना मनमोहक था कि बालक रामकृ्ष्ण की पूरी चेतना उसी में समा गई और वे बेसुध होकर गिर पड़े। आसपास के लोगों ने जब यह देखा तो वे तुरंत उन्हें बचाने के लिए दौड़े। वे उन्हें उठाकर घर ले आए। कहते हैं कि यह उनका पहला आध्यात्मिक अनुभव था, जिसने भविष्य में उन्हें आध्यात्म की ओर मोड़ दिया। जब वे 7 वर्ष के थे, तब उनके पिता की मृत्यु ने उनके आत्मनिरीक्षण को और गहरा कर दिया और दुनिया से उनकी वैराग्यता को और बढ़ा दिया।
 
2. काली आराधना:- 9 वर्ष की उम्र में उनका जनेऊ संस्कार हुआ और इसके बाद वह वैदिक परंपरा के अनुसार उनकी शिक्षा दीक्षा हुई। इसी दौरान रानी रासमणि ने हुगली नदी के किनारे दक्षिणेश्वर काली मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया था। रामकृष्ण का परिवार ही इसकी जिम्मेदारी संभालता था। रामकृष्ण भी इसी में सेवा देने लगे और पुजारी बन गए। 1856 में रामकृष्ण को इस मंदिर का मुख्य पुरोहित नियुक्त कर दिया गया। इसके बाद उनका मन पूरी तरह से माता काली की साधना में लग गया। उन्हें माता कालिका साक्षात दिखाई देने लगी। वे उनसे रोज बाते भी करने लगे थे। 
 
3. कई धर्मों की साधना:- रामकृष्ण परमहंस से केवल हिंदू धर्म की परंपरा की ही साथना नहीं की। उन्होंने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की। उनका पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता। इसके चलते उन्होंने कई तरह की सिद्धियां प्राप्त कर ली थी। कहते हैं कि एक बार रामकृष्‍ण परमहंस जी सखी संप्रदाय की साधना कर रहे थे तब उनका चरित्र पूर्णत: स्त्रियों जैसा हो गया था और यह भी कहा जाता है कि इससे उनके शरीर में भी बदलाव आ गया था।
 
4. विवेकानंद बने उनके शिष्य:- स्वामी विवेकादंन अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किंतु परमहंसजी ने देखते ही पहचान लिया कि ये तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। परमहंसजी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। 1881 में रामकृष्ण को उन्होंने अपना गुरु बनाया। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। 
 
5. संवेदनशील रामकृष्ण परमहंस:- एक बार रामकृष्‍ण परमहंस हुगली नदी पर बैठे थे तभी वे जोर-जोर से चिखने-चिल्लाने लगे कि मुझे मत मारो। सभी भक्त उन्हें देखकर आश्चर्य करने लगे कि उन्हें तो कोई नहीं मार रहा फिर भी उनकी पीट पर कोड़े से मारने के निशान उभरने लगे थे। बाद में पता चला कि नदी के उस पार कोई अंग्रेज गरीबों को कोड़े से मार रहा था जिसका दर्द उन्होंने भी झेला।

16 अगस्त 1886 की सुबह श्री रामकृष्ण ने दिव्य माँ काली का नाम लेते हुए अपना भौतिक शरीर त्याग दिया, और अनंत काल में चले गए।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी