Motivational Tips : कुछ भी नहीं होना ही कुछ होना है, जानिए जे. कृष्णमूर्ति के 10 विचार

अनिरुद्ध जोशी
कृष्णमूर्ति का जन्म 12 मई 1895 में आंध्रप्रदेश के मदनापाली में मध्‍यवर्ग परिवार में हुआ। कृष्णमूर्ति के विचारों के जन्म को उसी तरह माना जाता है जिस तरह की एटम बम का अविष्कार के होने को। कृष्णमूर्ति अनेकों बुद्धिजीवियों के लिए रहस्यमय व्यक्ति तो थे ही साथ ही उनके कारण विश्व में जो बौद्धिक विस्फोट हुआ है उसने अनेकों विचारकों, साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों को अपनी जद में ले लिया। उनके बाद विचारों का अंत होता है। उनके बाद सिर्फ विस्तार की ही बातें हैं। आओ जानते हैं महान दार्शनिक के अद्भुत विचार।
 
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1. मानव बनने की शर्त : कृष्णमूर्ति का कहना था कि आपने जो कुछ भी परम्परा, देश और काल से जाना है उससे मुक्त होकर ही आप सच्चे अर्थों में मानव बन पाएंगे। (मनुष्य के सर्व प्रथम मनुष्य होने से ही मुक्ति की शुरुआत होती है। किंतु आज का मानव हिंदू, बौद्ध, ईसाई, मुसलमान, अमेरिकी, अरबी या चाइनी है।)
 
2. स्वतंत्र सोच होना चाहिए : जीवन का परिवर्तन सिर्फ इसी बोध में निहित है कि आप स्वतंत्र रूप से सोचते हैं कि नहीं और आप अपनी सोच पर ध्यान देते हैं कि नहीं। (मतबल यह कि आप एक मजहबी कुएं में बैठकर ही सोचते रहते हैं या कि आपकी खुद की सोच भी है या नहीं? यह भी की आप जो सोच रहे हैं उस पर सोचते हैं कि नहीं कि मैं क्या सोच रहा हूं सही या गलत? धर्म, राष्ट्र, समाज या अन्य किसी का चश्मा पहनकर दुनिया को ना देखें।)
 
 
3. सच एक अनजान पथ : एनी बेसेंट चाहती थीं कि कृष्णमूर्ति में वे संभावनाएं है जिससे बुद्ध की चेतना उन में उतर कर कार्य करें, लेकिन 'आर्डर ऑफ दि स्टार' के हॉलेंड स्थित एक कैम्प में जहां दुनिया भर के लोग एकत्रित हुए थे वहां भरी सभा में कृष्णमूर्ति ने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि 'सच तो एक अंजान पथ है। कोई भी संस्था, कोई भी मत सच तक रहनुमाई नहीं कर सकता।' 
 
4. सच तुम्हारे भीतर है : उन्होंने 'आर्डर ऑफ दि स्टार' को भंग करते हुए कहा कि 'अब से कृपा करके याद रखें कि मेरा कोई शिष्य नहीं हैं, क्योंकि गुरु तो सच को दबाते हैं। सच तो स्वयं तुम्हारे भीतर है।..सच को ढूँढने के लिए मनुष्य को सभी बंधनों से स्वतंत्र होना आवश्यक है।'
 
 
5. राजनीतिज्ञों के पास हल नहीं है : संसार विनाश की राह पर आ चुका है और इसका हल तथाकथित धार्मिकों और राजनीतिज्ञों के पास नहीं है। (जे. कृष्ण मूर्ति का मानना था कि राजनीतिक सोच के लोगों के पास संसार की समस्याओं का कोई हल हो भी तो वे उसे हल नहीं करना चाहेंगे क्योंकि वे सभी अपने राजनीतिक हितों के बारे में सोचते हैं।) 
 
6. कुछ भी नहीं होना ही कुछ होना है : दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है यथार्थवादी और स्पष्ट मार्ग पर चलना। आपके भीतर कुछ भी नहीं होना चाहिए तब आप एक साफ और सुस्पष्ट आकाश होने के लिए तैयार हो। धरती का हिस्सा नहीं, आप स्वयं आकाश हैं। जे. कृष्णमूर्ति का कहना है कि यदि आप कुछ भी है तो फिर आप कुछ नहीं।
 
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7. प्रवचन एक तरफा विचार है : जे. कृष्णमूर्ति कहते थे कि ज्ञान के लिए संवादपूर्ण बातचीत करो, बहस नहीं, प्रवचन नहीं। बातचीत सवालों के समाधान को खोजती है, बहस नए सवाल खड़े करती जाती है और प्रवचन एकतरफा विचार है।
 
8. ज्ञान नहीं अंतर्दृष्टी होना चाहिए : किसी भी चीज की गहरे तक समझ और चीज की त्वरित समझ। यहां तक कि समझने के लिए ध्यान पूर्वक सुनना। कई मर्तबा आप सिर्फ देखते हैं, मगर सुनते नहीं। कुछ सीखने के बाद आप वैसा करने लगते हैं, इसका मतलब हुआ जब सीखने की क्रिया में जानकारी और ज्ञान का संग्रहण होता है, तो आप ज्ञान के मुताबिक काम करने लगते हैं, चाहे वह काम कुशलता से करें या अकुशलता से। अर्थात सीखना यानी ज्ञान प्राप्त करना और उसका उपयोग करना है। फिर करो और सीखो भी एक तरीका है, जो सीखने और करने से बहुत अलग नहीं है। दोनों में ही ज्ञान का आधार विद्यमान है। इस तरह ज्ञान आपका स्वामी हो गया या ज्ञान आपका शासक हो गया। जहां भी सत्ता या शासक हो जाता है, वहां दमन भी होता है। इस प्रक्रिया से आप कहीं नहीं पहुंचते, यह तो एक यांत्रिक क्रिया है। उक्त दोनों प्रक्रिया में आप यांत्रिक गति ही देखते हैं। अगर आप सचमुच उस यांत्रिक गति को पहचान लेते हैं, तो इसका मतलब उस गति में आपकी जो दृष्टि है, वही है अंतर्दृष्टी। इसका मतलब हुआ कि आप ज्ञान से कोई बात नहीं सीखते, बल्कि सीखते हैं ज्ञान और उसकी सत्ता में निहित तत्वों को देखकर और इसलिए आपके सीखने का पूरा व्यवहार ही अलग प्रकार का हो जाता है।
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9. ईश्‍वर को मनुष्‍य ने बनाया : ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया, बल्कि ईश्वर का जन्मदाता तो खुद मनुष्य है। मनुष्य ने ईश्वर का आविष्कार अपने फायदे के लिए किया है। (कृष्णमूर्ति को ईश्‍वर एक विचार से ज्यादा कुछ नजर नहीं आता। यानी, मनुष्य की जैसी अवधारणा है, उसका ईश्‍वर वैसा ही है। इसीलिए हर धर्म का ईश्वर अलग है। उनके अनुसार अगर ईश्वर है भी तो उसके होने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। अब तक किस समस्या का समाधान ईश्वर से हुआ?)
 
 
10. मानसिक विकार : प्रणय या सहवास करना कोई समस्या नहीं है, लेकिन उसके बारे में हरदम सोचते रहना एक समस्या है जिससे ज्यादातर लोग पीड़ित हैं। यह क्रिया कुछ पलों के लिए ही सही लेकिन इंसान के अहम को पूरी तरह गायब कर देती है, इस तरह वह इन पलों में खुद को और अपनी तमाम समस्याओं को भुला देता है और फिर बार-बार यह स्थिति पाने की कोशिश करता है। यहीं से यह क्रिया एक समस्या बन जाती है।
 
जे कृष्ण मूर्ति ने 91 वर्ष की आयु में 1986 को अमेरिका में देह छोड़ दी। लेकिन आज भी दुनियाभर की लाइब्रेरी में कृ‍ष्णमूर्ति उपलब्ध हैं।

संदर्भ : जे. कृष्ण मूर्ति की पुस्तकों से संकलित

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