1. जन्म के 3 वर्ष तक नहीं निकले घर से बाहर : रामानंद का जन्म प्रयाग में हुआ था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के एक कुलपुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के तीन वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने और एक वर्ष तक आईना नहीं दिखाने को कहा था। जहां रामानंद का जन्म हुआ उस स्थान को वर्तमान में श्री मठ प्राकट्य धाम कहा जाता है।
2. आठ वर्ष की उम्र में बने संत : आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्यजी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े-बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।
3. बारह महान गुरुओं के गुरु थे रामानंद : रामानंदजी 1. संत अनंतानंद, 2. संत सुखानंद, 3. सुरासुरानंद , 4. नरहरीयानंद, 5. योगानंद, 6. पिपानंद, 7. संत कबीरदास, 8. संत सेजान्हावी, 9. संत धन्ना, 10. संत रविदास, 11. पद्मावती और 12. संत सुरसरी के गुरु थे।
4. राम रक्षा स्तोत्र उन्होंने लिखा : स्वामी रामानंद ने अनेक ग्रंथ लिखे थे। जिनमें से श्रीवैष्णव मताव्ज भास्कर, श्रीरामार्चन-पद्धति प्रमुख है। इसके अलावा गीताभाष्य, उपनिषद-भाष्य, आनन्दभाष्य, सिद्धान्त-पटल, राम रक्षा स्तोत्र, योग चिन्तामणि, रामाराधनम्, वेदान्त-विचार, रामानन्दादेश, ज्ञान-तिलक, ग्यान-लीला, आत्मबोध राम मन्त्र जोग ग्रन्थ, कुछ फुटकर हिन्दी पद और अध्यात्म रामायण भी है।
5. योगबल शक्ति से बादशाह को झुकाया : कहते हैं कि उनके काल में मुस्लिम बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया था और अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंदकर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट दे दी थी।
जाति पाँति पूछै ना कोई।
हरि को भजै सो हरि का होई।
रामानंदाचार्य की धार्मिक परंपरा और संप्रदाय के अनुसार उन्होंने ईस्वी सन् 1410 में देह त्याग दी थी।