saint ramdas: धार्मिक पुराणों के अनुसार महाराष्ट्र की भूमि संत एवं महात्माओं की रही है। यह भूमि संत एकनाथ, संत नामदेव, संत जनाबाई, संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, मुक्ताबाई, सोपानदेव आदि कई आध्यात्मिक संतों का जन्म स्थान एवं कर्म स्थान रही है। इसी श्रेणी के एक सर्वश्रष्ठ संत रामदास स्वामी भी है, जिन्होंने फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को समाधि ली थी।
आइए जानते हैं उनके जीवन की रोचक बातें...
1. वर्ष 2024 में गुरु रामदास समाधि दिवस 4 मार्च तथा कैलेंडर के मतभेद के चलते 5 मार्च को मनाया जा रहा है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार समर्थ गुरु रामदास स्वामी ने फाल्गुन कृष्ण नवमी के दिन समाधि ली थी। अत: देशभर में इस दिन श्री रामदास नवमी मनाई जाती है। और गुरु रामदास स्वामी के भक्तों के लिए यह तिथि बहुत महत्व रखती हैं।
2. संत रामदास स्वामी का जन्म औरंगाबाद जिले के जांब नामक स्थान पर हुआ। उनका वास्तविक नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी (ठोसर) था। वे बचपन में बहुत शरारती थे। गांव के लोग रोज उनकी शिकायत उनकी माता से करते थे। एक दिन माता राणुबाई ने नारायण (यह उनके बचपन का नाम था) से कहा, 'तुम दिनभर शरारत करते हो, कुछ काम किया करो। तुम्हारे बड़े भाई गंगाधर अपने परिवार की कितनी चिंता करते हैं!' यह बात नारायण के मन में घर कर गई। दो-तीन दिन बाद यह बालक अपनी शरारत छोड़कर एक कमरे में ध्यानमग्न बैठ गया।
दिनभर में नारायण नहीं दिखा तो माता ने बड़े बेटे से पूछा कि नारायण कहां है। उसने भी कहा, 'मैंने उसे नहीं देखा।' दोनों को चिंता हुई और उन्हें ढूंढने निकले पर, उनका कोई पता नहीं चला। शाम के वक्त माता ने कमरे में उन्हें ध्यानस्थ देखा तो उनसे पूछा, 'नारायण, तुम यहां क्या कर रहे हो?' तब नारायण ने जवाब दिया, 'मैं पूरे विश्व की चिंता कर रहा हूं।' इस घटना के बाद नारायण की दिनचर्या बदल गई।
3. बचपन में ही उन्हें साक्षात प्रभु रामचंद्र जी के दर्शन हुए थे। इसलिए वे अपने आपको रामदास कहलाते थे। उस समय महाराष्ट्र में मराठों का शासन था। शिवाजी महाराज रामदास जी के कार्य से बहुत प्रभावित हुए तथा जब इनका मिलन हुआ तब शिवाजी महाराज ने अपना राज्य रामदास जी की झोली में डाल दिया। राष्ट्र गुरु समर्थ स्वामी रामदास छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। उन्हीं से शिवाजी महाराज ने अध्यात्म व हिन्दू राष्ट्र की प्रेरणा प्राप्त की थी। रामदास जी ने छत्रपति शिवाजी से कहा था, 'यह राज्य न तुम्हारा है न मेरा। यह राज्य भगवान का है, हम सिर्फ न्यासी हैं।' शिवाजी समय-समय पर उनसे सलाह-मशविरा किया करते थे।
4. संत रामदास ने समाज के युवा वर्ग को यह समझाया कि स्वस्थ एवं सुगठित शरीर के द्वारा ही राष्ट्र की उन्नति संभव है। इसलिए उन्होंने व्यायाम एवं कसरत करने की सलाह दी एवं शक्ति के उपासक हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की। समस्त भारत का उन्होंने पद-भ्रमण किया। जगह-जगह पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की, जगह-जगह मठ एवं मठाधीश बनाए ताकि पूरे राष्ट्र में नव-चेतना का निर्माण हो। स्वामी रामदास ने बहुत से ग्रंथ लिखे। इसमें 'दासबोध' प्रमुख है, इस ग्रंथ में मैनेजमेंट ऑफ साइंस के आध्यात्मिक आधार का सटीक वर्णन किया गया है। इसी प्रकार उन्होंने मन को भी संस्कारित करने हेतु 'मनाचे श्लोक' ग्रंथ भी लिखा है।
5. अपने जीवन का अंतिम समय समर्थ गुरु रामदास स्वामी ने सातारा के पास परळी के किले पर व्यतीत किया। तथा फाल्गुन कृष्ण नवमी को 73 वर्ष की आयु में समाधि ली थी। इसीलिए नवमी तिथि को देश भर में उनके अनुयायी 'दास नवमी' उत्सव के रूप में मनाते है। बाद में इस किले का नाम सज्जनगढ़ पड़ा। वहीं उनकी समाधि स्थित है। प्रतिवर्ष दास नवमी पर यहां लाखों भक्त उनके दर्शन के लिए आते हैं तथा समर्थ उनके भक्त भारत के विभिन्न प्रांतों में 2 माह का दौरा निकालते हैं और दौरे में मिली भिक्षा से सज्जनगढ़ की देखरेख और वहां की व्यवस्था चलती है। आज भी गुरु रामदास जी की गिनती राष्ट्रवादी संतों में प्रमुखता से होती है।
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