Ravidas jayanti kyu manate hai: स्वामी रामानंद जी के शिष्य और कबीरदास जी के गुरु भाई संत शिरोमणि कवि रविदास जी एक महान संत थे। संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को हुआ था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। श्रीराम भक्त रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।
संत रविदास जयंती कब है- अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 5 फरवरी 2023 रविवार के दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाएगा। कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। हालांकि कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है।
क्यों मनाते हैं रविदास जयंती : संत रविदास एक महान आध्यात्मिक गुरु थे। उनके काल में उनके हजारों शिष्य थे और आज उनके लाखों अनुयायी हैं। उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान कर उन्हें याद करते हैं। इसके बाद वे उनके जीवन से जुड़ी महान घटनाओं और चमत्कारों को याद करके उनसे प्रेरणा लेते हैं। इसी के साथ समाज में एकाता कायम रहे और लोग ऊंची नीच को भूलकर एक रहे इसीलिए इसके भक्त उनके जन्म स्थान और समाधि स्थल पर एकत्रित होकर उनका जन्मोत्सव मनाते हैं।
संत रविदासजी का परिवार : उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है।
मानवतावादी संत : उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम 'सदना पीर' उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब था।
निर्वाण : कहते हैं कि स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने 'संतन में रविदास' कहकर इन्हें मान्यता दी है। राजस्थान की कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं। वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। मान्यता है कि वे वहीं से स्वर्गारोहण कर गए थे। हालांकि इसका कोई आधिकारिक विवरण नहीं है लेकिन कहते हैं कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी।