कोरोना काल में बदल गई है Life & Relationship के प्रति सोच, क्या कहते हैं युवा

WD
कोरोना काल ने बहुत कुछ बदल दिया है....मन, विचार,सपने,रिश्ते,सोच और सब कुछ पा लेने की चाह भी.... अचानक से सब थम गया..हम कैद हो गए..हमारे प्रिय हमसे ऐसे जुदा हुए जैसे किसी शाख से पत्ते झर रहे हो...हम कुछ न कर सके....कुछ कर पाना हमारे बस में था ही कहाँ.....
 
 बदलते हुए इस भयावह दौर में हमने बात की इस देश की तरुणाई से.....और जाना उनसे कि कोविड काल में वे क्या सोच रहे हैं....क्या सीखा उन्होंने इस वक़्त से....हमने देखा कि इस विषम दौर ने इन युवाओं के भीतर संवेदनशीलता की एक नई परिभाषा रची है...उनके भीतर इंसानियत की एक सच्ची और पवित्र मूरत गढी है.... 
 
आइए जानते हैं पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला, देअविवि, इन्दौर के युवा साथियों के विचार ....
अथर्व पंवार : कोरोना हमारा चरित्र निर्माण करने आया है....  
 
कोरोना मेरे जीवन में एक शिक्षक के रूप में आया , इसने अनेक चीजें मुझे सिखाई । स्वयं पर आत्म चिंतन करने का समय मिला, जो समय व्यर्थ होता था उसका प्रबंधन करना सीखा, कम साधनों में कैसे जी सकते हैं यह सीखा, साथ ही हमारी उम्र ऐसी है जिसमें हमारे माता-पिता और हमारे मध्य एक जनरेशन गैप बन जाती है हम उनसे दूर होते जाते हैं पर इस समय में रिश्तों का बंधन समझ आया, सुख-दुख कैसे बांटे जाते हैं वह समझ आया, कौन अपना और कौन पराया है रिश्तों का यह भेद भी समझ आया। 
 
अपने भविष्य को लेकर कई चीजें स्पष्ट हुई। आज के समय में सिर्फ एक लक्ष्य होना और उसी से जीवन चलाना मुश्किल होता है, हमें उसके अल्टरनेटिव भी सोचना होंगे , हम घोड़े की भांति सिर्फ एक लक्ष्य देखते हैं पर हमें अब दूसरे रास्ते भी देखना पड़ेंगे क्योंकि कुछ भी स्थिर नहीं है। इसके साथ ही मुझे अनेक स्किल्स सुधारने का भी मौका मिला जिन्हें डिजिटल युग में हम भूल गए थे वह है - कसरत,‌ चित्रकारी,किताबें पढ़ना, संगीत सुनना , पाक-कला, बागबानी आदि, यह सब कहीं छुप गई थी जो इस स्थिर समय में वापस प्रकट हुई। सकारात्मक दृष्टि से देखें तो कोरोना हमारा चरित्र निर्माण करने आया है.... । 
तृप्ति उपाध्याय : धैर्य रखना सीखा 
 
मुझे कोरोना काल ने जो सिखाया है उसमें धैर्य मेरे लिए नई सीख है। बाहर और घर के हालात बहुत ख़राब थे, कई बार ऐसे हालात हुए की अन्दर धैर्य नहीं था फिर भी हमने जाना कि इन हालातों का सामना केवल धैर्य से ही किया जा सकता है...

हमारी मानसिक स्थिति भी बुरी तरह से प्रभावित हुई, हमारी शारीरिक स्थिति तो ख़तरे में है ही उसका तो ध्यान रखना ही है पर कैसे हमको हमारी मानसिक सेहत का भी ख्याल रखना है.... 

कैसे इतनी विपरीत स्थिति में खुद को सकारात्मक बनाए रखना है और मुश्किल वक़्त का सामना धीरज के साथ करना है।
दीप श्रीमाल : हमें सतर्क रहना सिखाया है 
 
कोरोनाकाल ने हमें सतर्क रहना सिखाया है...

बीमारी कितनी गंभीर और घातक हो सकती है ये हमने जान लिया है...
 
इस समय में हमने खुद की प्रगति पर हमने और अच्छे से ध्यान दिया और अपने कार्यक्षेत्र में खुद का विकास कैसे करें ये गंभीरता से समझा है....

ख्वाहिशों की डोर से बंधी हमारी ज़िन्दगी को सरलता और सात्विकता ने कैसे अपना बना लिया ये भी इस कोरोनाकाल में सीखने को मिला है.... 
स्वाति शेखावत : जीत लें यह जंग हम सब मिल कर
 
मुसीबतों का छोड़ कर साथ थाम लेना परिवार का हाथ, ना छोड़े कभी अपनों का साथ। जहां पल की ख़बर नहीं वहां क्यों करता है तू बन्दे जीवन भर साथ देने की बात, पहले आज तो कर ले अपनों से अपने मन की बात।
 
यह समय भी बीत जाएगा लेकिन तेरी नेकी के किस्से सालों याद किए जाएंगे, तेरी दिलदारी दोस्तों की मदद में छुपी यारी याद की जाएगी। तू रुक मत तू झुक मत, यकीन रख खुद पर, होगी यह जंग भी पार मत मान तू अब हार ।
 
जात न पूछी जा रही है जनाजे से, तो क्यों तू पूछ रहा है हर एक दरवाज़े से मदद कर दुआ कर की जीत लें यह जंग हम सब मिल कर।

यश वट : कोरोना ने सारी सभ्यता को मनुष्यता का पाठ पढ़ाया है
 
मनुष्य ने सदैव ही अतीत से प्रेरणा और सीख ली है,वर्तमान से संघर्ष किया है और भविष्य के लिए उम्मीद सजाई है।
कोरोना महामारी से हर किसी ने निजी सीख ली है,सबके अनुभव अलग थे देखने,परखने का नज़रिया अलग था मगर सबकी व्याकुलता,बैचैनी और चिंता समान थी। 
 
कोरोना ने सभी को अपनी जीवनशैली पर मनन एवं मंथन करने पर विवश किया है। कोरोना ने समाज में मौजूद असमानता को बेपर्दा किया,कैसे देश का एक वर्ग घर में बैठ लॉकडाउन को स्वयं से परिचित होने का,अपनी कला को निखारने या प्रदर्शित करने का अवसर समझ रहा था,वहीं सड़कों पर लाखों मजदूर भूखे-प्यासे पैदल घरों की और और पलायन कर रहे थे।
 
कोरोना ने हमें हमारी मूल आवश्यकता से परिचित कराया,हमें हमारी जड़ों से जोड़ा,गगनचुंबी इमारतों,मल्टीप्लेक्स और कॉन्फ्रेंस में व्यस्त लोगों को परिवार के बीच,घर के आंगन तक पहुंचाया और ठहराया भी।
 
गतिशील जीवन को ठहरने एवं मंथन करने का मौका दिया,अच्छे और बुरे को परखना सिखाया,महत्वाकांक्षा और आनंद के बीच का अंतर समझाया है। कॉन्टिनेंटल,चाईनीज,इटालियन खाने वालों को खेतों की गाजर-मूली और घर के सात्विक भोजन,सत्तू - दलिया का महत्व सिखलाया,इस आधुनिक,भौतिकवादी समाज में लोगों को पुनः एक दूसरे की तरफ मदद का हाथ बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। हर छोटे-साधारण कामगार का महत्व समझाया है,रिश्तों की अहमियत दिखलाई है । स्वास्थ,स्वच्छता,सीमित साधन,पर्यावरण संरक्षण,जैव विविधता की और सचेत किया है। सही मायने में कोरोना ने सारी सभ्यता को मनुष्यता का पाठ पढ़ाया है ।
प्रजेश जुनेजा : 2 दिन की ज़िंदगी है खुशियां बटोर सके तो बटोर लें.... 
 
मैंने सोचा था कि राष्ट्रीय आपदा में देश साथ खड़ा होकर मुसीबत का सामना करेगा लेकिन मुझे आपदा के समय में भी राजनैतिक बिगुल ही सुनाई दिए जो कि गलत है। मैंने दवाइयों , इंजेक्शन, ऑक्सिजन के अभाव में लोगों को दर दर भटकते देखा इस से मैंने डिमांड व सप्लाई की विडम्बना बारे में जाना।
 
मुझे लगा कि सात्विक जीवन शैली ही आज की जरुरत है। लोगों की मदद करने का आत्मिक सुख लिया। यकीन मानिए किसी जरुरतमंद की मदद करके बहुत सुकून मिलता है....मैंने लॉकडाउन के चलते अपनी दिनचर्या में बदलाव किए हैं और उसने मुझे जीवनके प्रति सकारात्मक बनाया है ।
 
मैंने रसोई में भी बहुत आविष्कार किए जिस की वजह से अब कुछ व्यंजन बनाना सीख गया.... 
 
मैंने बनावटी डिजिटल दुनिया से बहार निकल कर अपने परिवार के साथ समय बिताया । अपने दोस्तों से रोज़ बातें करने लगा जिनसे मिल सकता था उनसे मिला भी...
 
अंतिम लेकिन अति महत्वपूर्ण मैंने यह जाना कि हम संसाधन और सुविधाओं के पीछे भागते हुए अपने सबसे बड़े धर्म इंसानियत को भूल चुके थे... कोरोना ने हमें एक बार रिफ्रेश कर इंसानियत धर्म के बारे में सिखाया है और ये बताया है कि 2 दिन की ज़िंदगी है खुशियां बटोर सके तो बटोर लें.... 
दिव्या अग्निहोत्री : पैसे कमाने के साथ बचाना भी जरूरी है 
 
कोरोना से बदलती दुनिया ने हमे इन बीते एक सालों मे बहुत कुछ सिखा दिया ना जाने कितने ही लोग थे जिन्होंने एक बारी घर से निकलने के बाद वापस कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा बड़े शहरों की चकाचौंध में बचपन की वो यादें धुंधली सी हो गई थी जिन्हें कोरोना ने फिर गांव की गलियों मे वापस लौटा दिया|

एक ओर जब सारा देश सारी दुनिया थम सी गई थी तो लोगों को अपनी जरूरतों के लिए पैसे कमाने के साथ बचाना भी जरूरी है इस बात का अहसास दिलाया तो वहीं अकेलेपन ने बस पैसे ही सब कुछ नहीं इस बात का।

और कोरोना ने उस माँ की खुशियां भी वापस दे दी जिसकी रसोई में बरसो से उसके बेटे की पसंद का कुछ नहीं पका था जो आज उसके बेटे के आने से पकने लगा। कोरोना ने लोगों को दर्द तो दिए लेकिन उसके साथ दर्द पर मरहम लगाना भी सिखा दिया........
पलक तिवारी : अपने-पराए की समझ आई
 
कोविड के दौर ने दुनिया में एक पॉज़ लगा दिया,

तरक्की की तरफ अग्रसर इंसान भूल गया था कि कहीं तो उसे रुकना होगा....

इस दौर ने इंसान को रोका और यह सोचने पर मजबूर किया कि तरक्की में हम इंसानियत को कहीं पीछे छोड़ आए हैं ,

ज़रूरत है उसे वापस पाने की,

ज़रूरत है अपने-पराए के पहचान की और अपनों के साथ की।
 
मुस्कान बाबेल : हमें हार नहीं मानना है लड़ना भी है जीतना भी है... 
 
मैंने यह सीखा कि किसी भी विकट परिस्थिति के लिए हमें तैयार रहना चाहिए और विकट परिस्थिति में हमें हार नहीं मानना है लड़ना भी है जितना भी है...   

हमारा स्वास्थ्य जो हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण  है.. हमारा  स्वस्थ रहना हमारे अपनों के लिए सबसे जरूरी है... कोरोना काल में हमने अपने खान-पान पर सबसे अधिक ध्यान दिया क्या खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए  बेहतर है क्या खाना हानिकारक रहेगा... इसका अंतर हमने जाना...

कम सुविधा में भी हम अच्छा जीवन जी सकते हैं... यह भी हमने जाना...परिवार का महत्व...परिवार साथ और स्वस्थ है तो सब कुछ है...

परिवार के साथ समय बिताना परिवार को समय देना सबसे सर्वोपरि है... साथ खाना ,साथ रहना, साथ खेलना, छोटी-बड़ी खुशियां साथ बिताना सबसे खूबसूरत पल है...  
अपूर्वा अग्रवाल : Importance of mental health
 
This covid era has taught me a number of things. However to tick off the first few things, it would be the importance of mental health.

These times have been tough, being unable to meet your loved ones has taken a toll on many people. So, what I’ve learnt is it is very important that we be so sound with our own self that when left in a situation like we’re in right now, we know how to fight.
 
Another thing that I’ve learnt is the importance of being self-dependent. Not just economically or professionally, but also being self dependent when it comes to house chores.

It wouldn’t be wrong if I said that gone is the time when we had people to do things for us. Now, we must take care of our own selves single handedly.
भावेश अग्रवाल :सेवा परमो धर्म:
 
सेवा परमो धर्म:। केवल यही उद्देश्य इस अनिश्चितता के समय में साकार है.... 

हमें जात पात, गरीब अमीर और धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठ केवल सेवा करनी है।

असंख्य विचार,कार्य और ज़रूरतें है इस कठिन समय में जो सोची और की जा सकती है.... 


और हम सेवा की भावना को प्रबल रख कर ही इस विषम दौर से उबर सकते हैं...
राशि पेंडसे  : लोगों से अच्छे संबंध होना भी बहुत ज़रूरी है
 
कोरोना महामारी के पहले तक परिवार क्या होता यह मैं नही समझ पाती थी, लेकिन कोरोना काल में मुझे यह पता चला कि परिवार ही सब कुछ है।

एक चीज़ जो मैंने मेरे पिताजी से सीखी वो थी कि आपके बाहरी जगत के हर क्षेत्र के लोगों से अच्छे संबंध होना भी बहुत ज़रूरी है।

मैं मेरे और मेरे परिवार के सभी सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य का श्रेय मेरे पिताजी को देती हूँ.... 

क्योंकि अगर वे चिकित्सकों के संपर्क में न होते तो एक छोटे शहर में जहाँ ढंग के अस्पताल नही हैं वहॉं मुझे और मेरे परिवार के अन्य जनों को ठीक होने में बहुत कठिनाई होती...
युक्ता दवे : कठिन समय में भी हमेशा सकारात्मक रहना
 
कोरोना वायरस ने हमारे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है....इस काल में एक तरफ हमने बहुत कुछ खो दिया है वहीं इस महामारी ने हमें बहुत कुछ सिखाया भी है.. जैसे कठिन समय में भी हमेशा सकारात्मक रहना,

अपने परिवार जनों के साथ रहना,एक दूसरे की मदद करना,कम से कम साधनों में काम करना और सबसे महत्वपूर्ण बात धरती रुपी हमारी मां का संरक्षण करना....

निश्चित रुप से हम कभी भी इस कठिन समय को भूल नहीं पाएंगे....

लेकिन जो कुछ भी हुआ है उससे शिक्षा लेकर हमें आगे बढना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा समय वापिस लौट कर न आए...
विदुषी मिया
 
कोरोना ने मुझे धैर्य रखना सिखाया...और जो कुछ अपने पास है उसमें खुश रहना सिखाया...

और कैसे किसी की भी कहीं भी, कभी भी मदद की जा सकती है ये भी मैंने  जाना... 

मैंने देखा कि कैसे लोगों का स्वभाव इन दिनों में बदला है...लोग मदद कर रहे हैं और एक दूसरे के साथ खडे हैं....

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख