मध्यप्रदेश भाजपा में दो खेमे, लेकिन शिवराज को डिगाना आसान नहीं !

भाजपा के संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की रवानगी से मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति के समीकरण भी गड़बड़ाते नजर आ रहे हैं। आने वाले दो महीने मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे और इस दरमियान कुछ बड़े फैसले भी हो सकते हैं। हालांकि पिछले 17 साल में कई बनते बिगड़ते समीकरणों को साध चुके शिवराज अभी भी आश्वस्त हैं। यह माना जा रहा है कि दिल्ली के नंबर वन और टू राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के माध्यम से भले ही केंद्रीय राजनीति को लेकर कुछ भी निर्णय ले लें, लेकिन मध्यप्रदेश में शिवराज को डिगाना इतना आसान नहीं है।

ये भाजपा और सिंधिया की भाजपा
- मध्यप्रदेश की भाजपा इन दिनों साफतौर पर दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। एक भाजपा और दूसरी सिंधिया की भाजपा। ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से जो विधायक मंत्री बने हैं और विधायक नहीं बनने के कारण जिन्हें निगम मंडल का अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनाया गया है, उन पर इन दिनों भाजपा की निगाहें हैं। इस खेमे के मंत्रियों से जुड़े मामलों को सुनियोजित तरीके से संघ और दिल्ली दरबार तक पहुंचाया जा रहा है। कुछ मंत्रियों का काम उनके विभाग में ऐसे अफसर तैनात कर टेढ़ा कर दिया गया है, जो मंत्रियों की सुनते ही नहीं। दिक्कत यह भी है कि विभागीय कामकाज के मामले में साफ-सुथरे रहने वाले सिंधिया के मंत्री प्रदेश में इससे ठीक उलट काम कर रहे हैं। इसको लेकर जितना कहा जाए कम है।

ऐसा मध्यप्रदेश में ही संभव है
ऐसा मध्यप्रदेश में ही संभव है। हजारों लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बने कारम डेम के घटिया निर्माण के दोषियों को सरकार अभी तक चिन्हित नहीं कर पाई है। सब कुछ रिकार्ड पर है, लेकिन जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने के बजाय सरकार ने पहला काम उन लोगों को सम्मानित करने का किया, जिन्होंने बांध के एक बड़े हिस्से को काटकर पानी बहाने में बड़ी भूमिका निभाई। इस कदम से डेम के आसपास की हजारों एकड़ जमीन में अब सिर्फ पत्थर ही बचे हैं। यह डेम अब साल-दो-साल तो किसी काम का नहीं रहेगा। बस इंतजार इस बात का है कि हजारों लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करने वालों पर कब सरकार का शिकंजा कसता है।

अब संगठन के निशाने पर हैं कई मंत्री, सांसद और विधायक
नगर निगम और जिला पंचायत के नतीजों के बाद कई मंत्री, सांसद, विधायक, निगम-मंडलों के पदाधिकारी और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के निशाने पर आ गए हैं। इनमें से ज्यादातर वे हैं जो अपने आपको बहुत तीसमारखां समझते हैं और संगठन से कोई लेना-देना नहीं रखते। अब जबकि इनकी चाबी संगठन के हाथ में आ गई है, ये शर्माद्वय के दरबार में लगातार दस्तक देने लगे हैं और यह बताने में लगे हैं कि उनके प्रभार के क्षेत्रों में पार्टी उम्मीदवार को जिताने में उन्होंने तो पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन स्थानीय लोगों की नाराजगी भारी पड़ गई।

नया मुख्य सचिव, दो दावेदारों के बीच तीसरा नाम भी
जैसे-जैसे मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आता जा रहा है, नए मुख्य सचिव को लेकर अटकलों का दौर भी तेज हो गया है। अभी तक तो घूम-फिरकर दो ही नाम सामने आ रहे थे, एक, पिछले 25 साल में बेहद ताकतवर नौकरशाह की पहचान बनाने वाले मोहम्मद सुलेमान और दूसरे बेहद लो-प्रोफाइल रहकर दिल्ली और भोपाल के प्रियपात्र बने अनुराग जैन। नेटवर्क सुलेमान का बहुत मजबूत है, तो जैन के प्रति साफ्ट कॉर्नर रखने वाले लोगों की भी लम्बी लिस्ट है। संघ के रवैये पर सबकी निगाहें हैं, क्योंकि यहां से भले ही जैन की मदद न हो, लेकिन सुलेमान का रास्ता तो कठिन हो ही सकता है। वैसे एक तीसरा नाम भी चर्चा में आ गया है, इसका खुलासा बाद में करेंगे।

इंदौर-1 विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के दो नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई
इंदौर के एक विधानसभा क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सत्यनारायण पटेल, सोनिया गांधी और कमलनाथ के खासमखास माने जाने वाले स्वप्निल कोठारी के बीच वर्चस्व की जो लड़ाई चल रही है, वह आने वाले समय यानि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो सकती है। नगर निगम चुनाव के नतीजों के बाद स्वप्निल एक अलग अंदाज में हैं और पार्टी नेतृत्व तक यह बात पहुंचाने में सफल हुए हैं कि जिनको पटेल साहब ने टिकट दिलवाया वे निपट गए और जिनके नाम मैंने आगे बढ़ाए वे जीतकर पार्षद बन गए। शह और मात के इस खेल में फिलहाल तो कोठारी पटेल पर भारी पड़ रहे हैं।

इंदौर में भाजपा की तिकड़ी चर्चा में
- इंदौर की भाजपा राजनीति में इन दिनों गौरव रणदिवे, सावन सोनकर और जयपाल सिंह चावड़ा की तिकड़ी चर्चा में है। तीनों का तालमेल गजब का है। तीनों एक-दूसरे की मददगार की भूमिका में हैं और विरोधियों को भी निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। तीनों की निगाहें तीन अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों पर है, इनमें से दो शहरी और एक ग्रामीण क्षेत्र में है। भोपाल के जो नेता इन तीनों पर भरोसा कर रहे हैं, वे कई मामलों में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और इसका फायदा भी इन्हें मिलेगा। वैसे इस तिकड़ी के इर्द-गिर्द रहने वालों की संख्या न पहले कम थी, न अभी। यह भी एक राज है।

चलते-चलते
जो पंडोखर सरकार कुछ दिन पहले तक बागेश्वर महाराज को पानी पी-पीकर कोस रहे थे, वे आखिर उनके प्रशंसक कैसे बन गए। यह जानना जरूरी हो गया है। कुछ तो कारण रहा होगा कि आखिर पंडोखर सरकार को ऐसा क्यों करना पड़ा। श्रेय भले ही गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को जा रहा हो, लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी तो कुछ और है।

पुछल्ला
पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना के काम करने के अंदाज ने पुलिस मुख्यालय में कई अफसरों की शैली बदलवा दी है। अभी तक खुद को लूप लाइन में मान रहे कई अफसर अब एक अलग जोश के साथ काम कर रहे हैं। पीएचक्यू का यह बदलाव वल्लभ भवन की पांचवीं मंजिल पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

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