* आचार्य चाणक्य के अनुसार अपने परिवार में उदारता, दूसरों पर दया, दुर्जनों से दुष्टता, साधुओं से प्रेम, विद्वानों से सरलता, शत्रुओं से बहादुरी, बड़े लोगों में क्षमा, स्त्री से आवश्यकता पड़ने पर चतुरता का व्यवहार- इन कलाओं में कुशल मनुष्य सदा अपनी मर्यादा बनाए रखते हैं।
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* बिना सोचे-समझे खर्च करने वाला, अनाथ, झगड़ा करने वाला और सब जाति की स्त्रियों का भोग करने के लिए व्याकुल मनुष्य शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है।
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* शोक से रोग, दूध से शरीर, घी से वीर्य और मांस से मांस बढ़ता है।
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* धैर्य से दरिद्रता, सफाई से मलिनता सुंदरता में बदल जाती है। शक्ति के कारण कुरूपता भी अच्छी लगती है। गर्म करने से खराब भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।
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* अर्जित धन का उचित मात्रा में खर्च ही उसका रक्षक है। नए जल के आने पर तालाब के जल को निकालना अच्छा है।
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* अपनी स्त्री, भोजन और धन- इन तीनों में संतोष करना चाहिए।