Rani durgavati history: वीरांगना रानी दुर्गावती की मृत्यु कैसे हुई थी?

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5 October Rani Durgavati Jyanati : 5 अक्टूबर को वीरागंना रानी दुर्गावती की जयंती मनाई जाती है। आइए जानते हैं उनके बारे में...
 
1. भारत की महानतम वीरांगना रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था, जिन्होंने अपनी मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। 
 
2. बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईस्वी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई।
 
3. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं। गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था।
 
4. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था।
 
5. सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी लेकिन उसको मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया।
 
6. दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया। इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी।
 
7. दुर्गावती बड़ी वीर थी। उसे कभी पता चल जाता था कि अमुक स्थान पर शेर दिखाई दिया है, तो वह शस्त्र उठा तुरंत शेर का शिकार करने चल देती और जब तक उसे मार नहीं लेती, पानी भी नहीं पीती थीं।
 
8. दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।
 
9. वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। इस वीरतापूर्ण चरित्र वाली रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गईं।
 
10. रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित भी किया, लेकिन जब रानी को यह एहसास हुआ कि वे बहुत दूर नहीं जा पाएंगी और जल्द ही दुश्मन के हाथों पकड़ी जा सकती हैं, तब उन्होंने अपना ही खंजर निकाला और अपने सीने में घोंप लिया। और इस तरह शत्रुओं से युद्ध करते हुए बहादुर रानी दुर्गावती ने 24 जून 1564 में अपना बलिदान दे दिया। रानी दुर्गावती की मृत्यु यानी उनके बलिदान दिवस पर भारत शासन द्वारा 24 जून 1988 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। 
 
बता दें कि रानी दुर्गावती के इस वीरतापूर्ण चरित्र के लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा। वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर-मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास वह स्थान जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थीं, अब उसी स्थान नारिया नाला के पास रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। 

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