स्वामी दयानंद सरस्वती जी जिनका नाम आज भी आदरपूर्वक लिया जाता है। वे बहुत बड़े देशभक्त थे। जो सदैव युवा और देशवासियों को प्रेरित करते थे। उन्होंने देश में कुरीतियों को खत्म करने का फैसला किया। तो जाति प्रथा को तोड़ने की समाज नई ज्योत जगाई। उन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना की जिसके विचार सुधारवादी और प्रगतिशील हो। जिसे उन्होंने आर्य समाज के नाम से पुकारा। वे शिक्षा से लेकर समाज उत्थान के तमाम कार्यों को लेकर एक सन्यासी योद्धा कहलाए।
बता दें कि स्वामी जी ही थे जिन्होंने स्वराज का नारा दिया था। जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। वह अपने उपदेशों के जरिए देश प्रेम और देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने की प्रेरणा देते रहे। उन्होंने जीवन भर हिंदी भाषा का प्रचार किया। स्वामी जी अपने महान व्यक्तित्व की वजह से जनमानस के दिलों में आज भी विराजमान है। 30 अक्टूबर 1883 में वह दिवंगत हो गए। आइए जानते हैं उनके बारे में 10 बड़ी बातें -
1.स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को मोरबी के पास काठियावाड़ी क्षेत्र, गुजरात में हुआ था। दयानंद सरस्वती जी का असल में नाम मूलशंकर था। उनका बचपन बड़े आराम से बीता। लेकिन वह पंडित बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने संस्कृत, वेद और अन्य धार्मिक अध्ययन में लग गए।
2. स्वामी जी के लिए कई विवाह के प्रस्ताव आने लगे। लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया। इसे लेकर स्वामी दयानंद सरस्वती और उनके पिता जी के बीच झगड़े होने लगे। लेकिन उनमें जीवन को अधिक गहराई से जांचने का अलग ही जुनून था। उन्हें सांसारिक जीवन व्यर्थ लगता था। 21 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन छोड़ने का चुनाव किया। और 1846 में हमेशा के लिए घर से विदा ले ली।
3. स्वामी दयानंद जी हमेशा से विदेशी शासन के विरोध में रहे। वह हमेशा युवाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे। देश के आजादी के लिए प्राण न्योछावर करने के लिए प्रेरित करते थे। वह महान राष्ट्र भक्त और समाज सुधारक थे। उन्होंने देश में रूढ़िवादी, आडंबर, अंधविश्वास और सभी मानवीय आचरणों का पुरजोर विरोध किया।
4. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने कार्यों से समाज को नई दिशा और ऊर्जा देते थे। स्वामी जी ने जातिवाद और वर्ण आधारित सामाजिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। और सभी को सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए प्रेरित किया।
5.स्वामी विवेकानंद जी ने पूरे देश की यात्रा कर पंडित और विद्वानों को वेदों के महत्व के बारे में बताया। इतना ही नहीं धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को फिर से हिंदू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया।
6. 1886 में स्वामी दयानंद जी के अनुयायी ने प्रेरित होकर लाहौर में लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की। जिसमें हिंदुओं को कई सारे लाभ मिले।
7. स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार आज भी प्रेरणादायी है। वे कहते थे 'अगर 'मनुष्य' का मन 'शांत' है, 'चित्त' प्रसन्न है, हृदय 'हर्षित' है, तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का 'फल' है।
8. स्वामी दयानंद सरस्वती जी 62 वर्ष की आयु में 30 अक्टूबर 1883 में वह दिवंगत हो गए थे। बता दें कि उन्हें धोखे से विष पिला दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने विष पिलाने वालों को माफ कर दिया था। ये विचार स्वामी दयानंद सरस्वती जी के ही थे। कहा था कि, 'वेदों में वर्णित सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि 'जिन्दगी' का मूल बिन्दु क्या है।' शायद इसलिए उन्होंने विष देने वाले को माफ कर दिया।
9. स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने महान ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' की रचना की थी। इसमें वैदिक धर्म का विस्तार से बताया गया है। साथ ही यह भी बताया कि वैदिक धर्म अन्य धर्म से अलग किस तरह है।
10.स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रमुख किताबें सत्यार्थ प्रकाश, वेदंगा प्रकाश, रत्नमाला, संकर्विधि और भारत्निर्वान हैं।