बच्चों के भी सेक्स क्लब

कहा जाता है कि बच्चे अपने बड़ों से ही सीखते हैं और अभी तक जिन बुराइयों के लिए हम बड़े लोगों, किशोरों और युवाओं को दोष देते आ रहे हैं, वह बुराई अब बच्चों तक फैल गई है।

  सनशाइन कोस्ट के एक स्‍कूल में नौ वर्ष के लड़कों का एक गुट पकड़ा गया था जो कि पाँच वर्ष के बच्चों को सेक्स संबंधी कामों में लगाने के लिए मजबूर करता था      
अगर आपको यकीन नहीं आता है तो ऑस्ट्रे‍‍‍ल‍िया में हुई इस घटना पर गौर करें। हालाँकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि ऑस्ट्रेलिया के अन्य भागों में और विभिन्न देशों में भी ऐसी घटनाएँ हो सकती हैं या हो रही होंगी।

ऑस्ट्रेलिया के कुछ समाचार-पत्रों ने इस आशय का समाचार प्रकाशित किया है कि ब्रिसबेन के सरकारी स्कूल में छह वर्ष की आयु के तीन बच्चे स्कूल में ही एक सेक्स क्लब चला रहे थे। वे अपने ही साथ पढ़ने वाली कक्षा दो की बच्च‍ियों के साथ 'सेक्स संबंध' बना रहे थे।

ब्रिसबेन के बाद गोल्ड और सनशाइन कोस्ट्‍स और कैयर्न्स पर सरकारी स्कूली में भी इसी तरह के क्लब या गतिविधियाँ होने का पता चला।

इन सरकारी स्कूलों की कहानियों से यह तथ्य उजागर होता है कि छोटे और युवा बच्चों का स्कूलों में शारीरिक शोषण होता है और स्कूलों के बड़े बच्चे ही छोटे बच्चों का शारीरिक शोषण करते हैं।

यह प्रवृत्ति ऑस्ट्रेलिया में ही नहीं वरन दुनिया के ज्यादातर देशों में ऐसा होता है। भारत में ऐसे मामले बहुत बड़ी संख्‍या में देखे जा सकते हैं।

कुछ समय पहले बिहार में बच्‍चों का यौन शोषण करने वाला गिरोह पकड़ा गया था जो कि यूपी और नेपाल से बच्‍चों को अगवा करते थे। नोएडा के कुख्यात निठारी कांड जैसा ही एक कांड बिहार के पूर्वी चंपारण और सीतामढ़ी जिले में सामने आया था। इस गिरोह के लोग बिहार के अलावा यूपी और नेपाल से बच्चों को अगवा करके उनका यौन शोषण करते थे।

बच्चों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'चाइल्ड राइटस एंड यू' (क्राई) के एक अध्ययन के मुताबिक भारत के तकरीबन 50 प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा मयस्सर नहीं है। जबकि भारी संख्या में बच्चे यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चों का यौन उत्पीड़न कार्यस्थल पर होता है क्योंकि उन्हें छोटी उम्र में काम करने के लिए भेज दिया जाता है। व्यापारिक यौन उत्पीड़न के 25 प्रतिशत शिकार 18 वर्ष से कम उम्र के हैं।

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की बच्चों के शोषण पर आधारित एक अध्ययन के मुताबिक हिन्दुस्तान के 53.22 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के शिकार हैं। यौन शोषण का शिकार केवल लड़कियाँ ही नहीं बल्कि लड़के भी हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक 47.06 फीसदी लड़कियाँ हवस की शिकार हैं, जबकि लड़कों के यौन शोषण के मामले 52.94 प्रतिशत हैं।

इस मामले में देश की राजधानी दिल्ली शीर्ष पर है। यहाँ पाँच साल से बारह साल की उम्र के बीच यौन शोषण के शिकार होने वाले बच्चों की संख्या सर्वाधिक है। उम्र के इस शुरुआती दौर में 39.58 फीसदी बच्चों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है। अब अगर ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के स्कूलों में यह हो रहा है तो आश्चर्य की बात नहीं है।

ब्रिसबेन के सरकारी स्कूल के सेक्स क्लब से कथित तौर पर जुड़े एक बच्चे के पिता का कहना है कि उनका बच्चा उन तीन लड़कों में से था, जिन्हें स्कूल के टॉयलेट ब्लॉक में में लड़कियों के साथ सेक्स गतिविधियों में संलिप्त देखा गया था लेकिन बच्चे के शिक्षकों ने एक सप्ताह तक उन्हें कोई जानकारी नहीं दी। उनका कहना था कि उन्हें शक है कि इस मामले में और बड़े लड़कों का हाथ है और इस मामले की पुलिस जाँच कराई जाए।

कूरियर मेल में एक समाचार छपा था जिसमें कहा गया था कि एक कंट्री स्कूल में जब ऐसा ही मामला सामने आया था तो प्रिसिंपल ने इसे चाइल्डहुड एक्सपीरियंस कहकर खारिज कर दिया था। इस घटना में एक लड़के ने एक सात वर्षीय लड़की के साथ सेक्स संबंधी कृत्य किया। लड़के ने लड़की को मारने की धमकी देकर उसे ओरल सेक्स करने पर मजबूर किया था।

हालाँकि स्कूल की प्रिसिंपल को हटाने के लिए पालकों और चाइल्ड वेलफेयर ग्रुपों ने माँग की थी लेकिन वे अभी भी उसी स्कूल में मौजूद हैं। इस बीच सनशाइन कोस्ट के एक स्‍कूल में नौ वर्ष के लड़कों का एक गुट पकड़ा गया था जो कि पाँच वर्ष के बच्चों को सेक्स संबंधी कामों में लगाने के लिए मजबूर करता था। करीब एक साल पहले इसी स्‍कूल में एक छोटी लड़की के साथ कुछ लड़कों ने बुरा व्यवहार किया था जो कि अभी तक डरी हुई रहती है।

जब इस तरह की घटनाओं को राज्य सरकारों के सामने लाया गया तो उत्तरी क्वींसलैंड की प्रीमियर समेत अन्य अधिकारियों ने कहा कि इन मामलों की जाँच की, जाएगी लेकिन सरकारी उदासीनता और अधिकारियों की लापरवाही के चलते जैसा भारत में होता है, कुछ वैसा ही ऑस्ट्रेलिया में हो रहा है।

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