Nepal earthquake : नेपाल में काठमांडू के निकट शुक्रवार तड़के शक्तिशाली भूकंप आया जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.1 मापी गई। बिहार के समस्तीपुर और पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकंप से जान-माल का किसी प्रकार का नुकसान होने की तत्काल कोई खबर नहीं मिली है। ALSO READ: आधी रात को भूकंप के झटकों से थर्राया असम, लोगों में दहशत
राष्ट्रीय भूकंप निगरानी एवं अनुसंधान केंद्र के अनुसार, काठमांडू से 65 किलोमीटर पूर्व में सिंधुपालचौक जिले में कोडारी राजमार्ग पर तड़के तीन बजकर 51 मिनट पर भूकंप आया जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.1 दर्ज की गई। भूकंप काठमांडू घाटी और उसके आसपास महसूस किया गया।
नेपाल सबसे सक्रिय टेक्टोनिक क्षेत्र (भूकंपीय क्षेत्र चार एवं पांच) में से एक में स्थित है, जिससे यहां अकसर भूकंप आते रहते है। हिमालयी राष्ट्र में अब तक का सबसे भयावह भूकंप 2015 में आया था। उस समय 7.8 तीव्रता के भूकंप के कारण 9,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 10 लाख से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थीं।
उल्लेखनीय है कि असम के मोरीगांव में गुरुवार को रात करीब 2.25 बजे लोगों को धरती हिलती महसूस हुई। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 5.0 दर्ज की गई है। इससे पहले 25 फरवरी को ओडिशा के पुरी के पास भूकंप का तेज झटका महसूस किया गया, जिसकी तीव्रता 5.1 मापी गई। कोलकाता समेत कई शहरों में झटके महसूस हुए थे। दहशत के मारे लोग घरों से बाहर निकल गए।
क्यों आते हैं भूकंप : होलकर विज्ञान महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. राम श्रीवास्तव वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि पृथ्वी पर भूकंप हमेशा आते ही रहते हैं। लगभग 30 से 35 भूकंप रोज आते हैं, लेकिन इनकी तीव्रता 2.5 और 3 रहने के कारण या तो ये महसूस ही नहीं होते या फिर बहुत हलके महसूस होते हैं।
दरअसल, जैसे हमारे घर के ऊपर छत होती है, उसी तरह जमीन के नीचे भी एक छत है, जिसे बेसाल्टिक लेयर कहते हैं। इतना ही नहीं प्रायद्वीपों की प्लेट परस्पर टूट गई हैं, इनमें दरारें आ गई हैं। जब ये प्लेट्स (टेक्टोनिक) एक दूसरे से टकराती हैं साथ ही जब इनके टकराने की गति तेज हो जाती है तो चट्टानें हिल जाती हैं। इसके कारण ही भूकंप आता है। सामान्यत: 3-4 की तीव्रता में नुकसान नहीं होता, लेकिन जब भूकंप 5-6-7 या इससे अधिक की तीव्रता का होता है तो नुकसान ज्यादा होता है।
श्रीवास्तव कहते हैं कि हिमालय का निर्माण ही प्लेटों के टकराने से हुआ था। द्वापरकालीन द्वारका नगरी भी भूकंप के कारण ही समुद्र में समा गई थी। हिन्दूकुश पर्वत से लेकर नॉर्थ ईस्ट एरिया भूकंप संवेदनशील क्षेत्र में आता है, जहां भूकंप आते रहते हैं। भूकंप की भविष्यवाणी अत्यंत असंभव है। कहते हैं कि सूर्य की लपटें जब निकलती हैं तो वे अपर एटमास्फेयर से टकराती हैं तो भूकंप आता है। हालांकि इसकी भी पुष्टि नहीं है।
कैसे बचें आपदा से : डिजास्टर मैनेजमेंट विशेषज्ञ डॉ. अनिकेत साने कहते हैं कि 2001 में गुजरात में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा था। कच्छ क्षेत्र की 50 से 60 प्रतिशत इमारतें तबाह हो गई थीं। उन्होंने कहा कि भूकंप की पहले से भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, लेकिन बचने के लिए प्री-अर्थक्वेक डिजास्टर प्लान तो तैयार कर ही सकते हैं।
उन्होंने कहा कि भूकंप से किसी की मृत्यु नहीं होती। इमारतों के मलबे में दबने से ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है। हमें इसके लिए भूकंप रोधी मकानों का निर्माण करना चाहिए। भूकंप रोधी इमारतों का निर्माण करने के लिए रेक्ट्रोफीलिंग मटेरियल का उपयोग किया जाता है। सरकार ने भी इसके लिए गाइडलाइंस जारी की है।
भूकंप से बचने के लिए सूत्र वाक्य का उल्लेख करते हुए साने कहते हैं कि भूकंप के समय रुको, झुको, ढको और बचो की नीति अपनानी चाहिए। हमें भूकंप के समय टेबल के नीचे घुसकर, या चौखट के नीचे खड़े होकर खुद को बचाना चाहिए। सिर बच जाता है तो बचने की उम्मीद बढ़ जाती है।