पुणे निवासी वर्मा का रावलपिंडी में अपने पैतृक घर जाने का सपना तब साकार हुआ जब पाकिस्तान ने उन्हें तीन महीने का वीजा दिया। बुधवार को जब वह प्रेम नवास मोहल्ला पहुंचीं तब मोहल्ले के लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। ढोल बजाए गए और उन पर फूल बरसाए गए। वर्मा अपने आप को रोक नहीं पाईं और ढोलक की थाप पर नाचती रहीं। विभाजन के समय जब वह महज 15 साल की थीं तब उन्हें अपना घर-बार छोड़कर भारत आना पड़ा था।
वर्मा अपने पैतृक घर के दूसरे तल पर हर कमरे में गईं और अपनी पुरानी यादें बटोरीं। उन्होंने बालकनी में खड़े होकर गाना गया एवं वह अपने बचपन को याद कर रो पड़ीं। पाकिस्तानी मीडिया ने बृहस्पतिवार को उनके हवाले से लिखा कि उन्हें लगा ही नहीं कि वह दूसरे देश में हैं। वर्मा ने कहा कि सीमा के दोनों पार रह रहे लोग एक-दूसरे से प्यार करते हैं और हमें एक होकर रहना चाहिए।
वह बहुत देर तक अपने घर के दरवाजों, दीवारों, शयनकक्ष, आंगन और बैठक को निहारती रहीं। उन्होंने उन दिनों की अपनी जिंदगी के बारे में बातें कीं। उन्होंने पड़ोसियों को बताया कि वह बचपन में बॉलकनी में खड़ी होकर गुनगुनाती थीं।