दुनिया के पांच सबसे बड़े भूकंप

नेपाल और भारत में शनिवार को आए विनाशकारी भूकंप ने दोनों देशों को हिला कर रख दिया है। 7.9 की तीव्रता वाले इस भूकंप का केंद्र काठमांडू के पास था, जिसके कारण भारत के शहरों में भी झटके महसूस किए गए। इस भयंकर भूकंप से नेपाल में करीब दस हजार ज्यादा लोगों की मौत होने की आशंका है। 81 साल पहले भी ठीक इसी तरह नेपाल थर्राया था, जिसमें 10,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। लेकिन, दुनिया कुछ ऐसे भूकंप भी आए, जिनमें लाखों लोगों की मौत हो गई। 
 
ऐसा पहला भूकंप 12 जनवरी 2010 को हैती में आया। 7.0 तीव्रता वाले भूकंप में 3,16,000 लोगों की मौत हुई थी और इस देश का इतिहास और भूगोल हमेशा के लिए बदल गया था। 
 
दूसरा भूकंप 27 जुलाई 1976 को चीन के तांगशान में आया था। 7.5 की तीव्रता से आए भूकंप में 2,42,769 लोगों की जानें गई थीं।
 
तीसरा भूकंप 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के सुमात्रा में 9.1 की तीव्रता से आया था जिसमें 2,27,898 मौतें हई थीं। इसका असर कई देशों पर पड़ा और यहां के लोगों का जनजीवन प्रभावित हुआ। 
 
ऐसा चौथा विनाशकारी भूकंप 16 दिसंबर 1920 को चीन के हाईयुआन में 7.8 तीव्रता से आया था जिसमें 2,00,000 लोगों की मौत हुई। 
 
पांचवां बड़ा भूकंप 1 सितंबर 1923 को जापान के कांतो में आया, जिसकी तीव्रता 7.9 की थी और इसमें 1,42,800 लोगों की मौत हुई थी। जनहानि के लिहाज से ये दुनिया के सबसे विनाशकारी भूकंप माने जा सकते हैं। लेकिन धनहानि और विनाश की दृष्टि से और भी भूकंप आए हैं। 
 
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ऐसे ही भूकंप भारत में आए हैं और कितने लोग की मौतें हुई हैं, इस जानकारी पर एक नजर डालते हैं। हाल के वर्षों में भारत में सबसे विनाशकारी भूकंप गुजरात में आया था। 26 जनवरी 2001 को जब राष्ट्रपति राजधानी नई दिल्ली में 52वें गणतंत्र दिवस पर सलामी ले रहे थे, तभी वहां से दूर गुजरात में 23.40 अक्षांश और 70.32 देशांतर तथा भूतल में 23.6 किमी. की गहराई पर भूकंप का एक तेज झटका आया। उसने राष्ट्र की उल्लासमय मनःस्थिति को राष्ट्रीय अवसाद में बदल दिया। विदित हो कि 2001 में गुजरात में आए भूकंप में 30,000 लोग मारे गए थे और इसमें गुजरात के कई कस्बे पूरी तरह से नष्ट हो गए थे। 
 
15 अगस्त 1950 को असम में आए भूकंप के बाद भारत में आया यह सबसे तेज भूकंप था। उत्तरी असम में आए 8.5 तीव्रता वाले उस भूकंप ने 11,538 लोगों की जान ले ली थी। सन 1897 में शिलांग के पठार में आए एक अन्य भूकंप का परिमाण 8.7 था। ये दोनों भूकंप इतने तेज थे कि नदियों ने अपने रास्ते बदल दिए। इतना ही नहीं भूमि के उभार में स्थाई तौर पर परिवर्तन आ गया और पत्थर ऊपर की ओर उठ गए।
 
वर्ष 1905 में हिमाचल के कांगड़ा में आए भूकंप में 20,000 लोगों की मौत हुई थी। जबकि वर्ष 1993 में लातूर (महाराष्ट्र) में आए भूकंप में 9,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
 
वर्ष 2005 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भूकंप आया था जिसमें 1,30,000 लोग मारे गए थे। वर्ष 1934 में बिहार में आए भूकंप में 30,000 लोगों की जान चली गई थी। 

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