चीन और भारत की भू-राजनीतिक रेल प्रतिस्पर्धा

राम यादव

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 (10:51 IST)
चीन दुनिया की सबसे महत्वाकांक्षी रेलवे परियोजनाओं में से एक का जल्द ही निर्माण शुरू करने वाला है। उसकी प्रस्तावित शिेंजियांग-तिब्बत रेलवे, लगभग 5,000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए उसके उत्तर-पश्चिमी शिंजियांग प्रांत को तिब्बत से जोड़ेगी। इस परियोजना की खास बात यह है कि यह रेल मार्ग जिस अक्साई चिन से होकर गुजरेगा, वह वास्तव में पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र है। चीन ने उस पर 1950 के दशक से अनाधिकार कब्ज़ा कर रखा है।
 
यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह नया रेलवे मार्ग उस वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बेहद निकट होगा, जो भारत के लद्दाख और चीन-नियंत्रित तिब्बत के बीच की विवादित सीमा है। चीन अपने उत्तर-पश्चिम को अपने दक्षिण-पश्चिम से जोड़ने वाली, लगभग 2,000 किलोमीटर लंबी, एक रणनीतिक सड़क का भी निर्माण करेगा। चीन की इन परियोजनाओं का समय, हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण एक अबूझ पहेली जैसा लगता है; इसलिए, क्योंकि चीन एक तरफ तो अपने कब्ज़े वाले भारतीय क्षेत्र से होकर रेलवे लाइनें बिछाने जा रहा है, दूसरी तरफ चीन-भारत संबंधों में एक नाटकीय बदलाव भी आता दिख रहा है।
 
अमेरिकी तिलमिलाहटः तियान्जिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन एकसाथ लाल गलीचे पर चलते दिखे। वह एक ऐसी प्रतीकात्मक छवि थी, जिसने अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के अनुसार, भारत को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में विकसित करने के दशकों लंबे अमेरिकी प्रयासों पर पानी फेर दिया। यह थिंक टैंक बड़े आराम से इस बात की अनदेखी कर रहा है कि अमेरिकी प्रयासों पर चीन गए मोदी ने नहीं, दुबारा राष्ट्रपति बनते ही डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ (सीमा-शुल्क) वाले उन्माद ने पानी फेर दिया है। भारत ही नहीं, सारी दुनिया इस समय ट्रंप को कोस रही है।
 
तिब्बत से होकर जाने वाली, लगभग 5,000 किलोमीटर लंबी प्रस्तावित चीनी रेलवे लाइन और 2,000 किलोमीटर लंबी सड़क को दुनिया की सबसे कठिन और महंगी परियोजनाएं माना जा रहा है। इसका उद्देश्य चीनी प्रदेश शिेंजियांग के होतान को तिब्बत के शिगात्से शहर से जोड़ना है। यह मार्ग औसतन 4,500 मीटर की ऊँचाई तक की कई पर्वत मालाओं को पार करेगा, जिनमें से दो-तिहाई पर पुल और सुरंगें बनाई जानी हैं। आशा की जा रही है कि परियोजना की ट्रेनें, अपने रास्ते के ग्लेशियरों (हिमनदों), पर्माफ्रॉस्ट (चिरतुषार) वाली जमीन और अनेक नदियों को शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस कम के तापमान पर भी पार कर लिया करेंगी।
 
50 अरब डॉलर की लागतः अगस्त 2025 में, चीन ने लगभग 13 अरब डॉलर के बराबर की पूंजी के साथ, सरकारी स्वामित्व वाली चाइना स्टेट रेलवे ग्रुप नाम की एक सहायक रेलवे कंपनी की स्थापना की। उसके द्वारा किए जाने वाले निर्माण कार्य की कुल लागत 50 अरब डॉलर से अधिक आंकी गई है। निर्माण कार्य इसी नवंबर में शुरू होने वाला है। उसे पूरा होने में दस साल लगेंगे; ट्रेनों को 120 से 160 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से चलाने की योजना है। चीन इस परियोजना को तिब्बत के लिए एक व्यापक विकास कार्यक्रम के रूप में भी प्रस्तुत कर रहा है, जिसका घोषित उद्देश्य रेल परिवहन के अलावा पर्यटन और आर्थिक बुनियादी ढाँचे को भी बढ़ावा देना है।
 
चीन के रणनीतिक लक्ष्यः चीन कुछ भी कहे, उसकी शिेंजियांग-तिब्बत रेलवे परियोजना मुख्य रूप से गैर-व्यावसायिक रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनी है। कम आबादी वाले जिस क्षेत्र से रेलवे लाइन गुजरेगी, उससे आर्थिक लाभ तो कम ही होंगे, असली महत्व होगा उन भावी सैन्य लाभों का, जिनकी बात चीन नहीं करता। इस रेलवे लाइन द्वारा चीनी सेना अपने सैनिक और सारे साज-सामान, भविष्य में भारत के साथ की लद्दाख वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा तक आसानी से और बड़ी तेज़ी से पहुंचा सकेगी।
 
यह रेलवे लाइन तिब्बत में चीन के व्यापक बुनियादी ढाँचों पर नियंत्रण का हिस्सा भी है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, पहले से ही चालू किंगई-तिब्बत लाइन (ल्हासा रेलवे) के अलावा, चीन इस क्षेत्र को पूर्णतः एकीकृत करने के लिए पांच प्रमुख रेलवे गलियारे (कॉरिडोर) बनाने जा रहा है। ल्हासा पर केंद्रित 5,000 किलोमीटर का एक पठारी रेलवे नेटवर्क बनाया जाएगा, एक ऐसा बुनियादी ढांचा, जो तिब्बत के बुनियादी ढांचे को चीनी मुख्य भूमि से जोड़ देगा।
 
भारत की रणनीतिक रेलवे योजनाएं : भारत भी चीन के साथ विवादित सीमाओं पर अपनी रणनीतिक रेलवे परियोजनाओं को आगे बढ़ा रहा है। 2012 की शुरुआत में ही 15 भू-रणनीतिक रेलवे लाइनों के निर्माण की पहचान की गई थी, उनमें से 4 निर्माणाधीन हैं। इस साल जून में, प्रधानमंत्री मोदी ने 272 किलोमीटर लंबी कश्मीर रेलवे का उद्घाटन किया, जिसने पहली बार कश्मीर घाटी को निचले इलाकों से जोड़ा और कश्मीर में सैनिकों की त्वरित तैनाती संभव बनाई।
 
भारतीय थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस के अनुसार, भारत सरकार एक ख़ास सीमा पार रणनीति पर काम कर रही है: नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के लिए नई रेलवे लाइनें पहले से ही चालू हैं, और अब भूटान के लिए भी ऐसी ही योजनाएँ बन रही हैं। चीन अभी भी नेपाल में अपने लिए लाभदायक स्थिति का अध्ययन कर रहा है, जबकि भारत ने बहुत पहले ही जयनगर-बिजलपुरा जैसी रेलवे लाइनों के
निर्माण द्वारा नेपाल के साथ कार्यशील संपर्क स्थापित कर लिया है। जयनगर बिहार में है और बिजलपुरा नेपाल में।
 
नेपाल में भारत-चीन रेल मिलन: नेपाल तक रेल पहुंच बनाने के लिेए इस समय भारत और चीन, दोनों प्रयत्नशील हैं। भविष्य में वहां दोनों देशों की रेलवे लाइनों का मिलन हो सकता है। चीन 5.5 अरब डॉलर की लागत से 73 किलोमीटर लंबी केरुंग-काठमांडू लाइन बनाने की योजना बना रहा है, जो लगभग पूरी तरह से एक सुरंग में बनेगी। भारत ने 141 किलोमीटर लंबी अपनी रक्सौल-काठमांडू रेलवे लाइन के लिए, रेल-पटरियों के बीच की सबसे अधिक चौड़ाई वाली ब्रॉड-गेज लाइन का विकल्प चुना है।
 
नेपाल में चीनी रेलवे लाइन का टर्मिनल तोखा में होगा, जबकि भारतीय लाइन का चोभर में। यदि दोनों परियोजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित होती हैं, तो नेपाल में भारत और चीन की रेल सेवाओं के बीच पहली बार सैद्धांतिक मिलन हो सकता है। नेपाल की अपनी भी 1,104 किलोमीटर लंबी एक पूर्व-पश्चिम रेलवे परियोजना है, पर उसके निर्माण का कार्य इतना सुस्त है कि 16 वर्षों के बाद, अब तक केवल 70 किलोमीटर तक ही रेलवे लाइन बन पाई है।
 
नेपाल का राजनीतिक संकटः चीन और भारत के बीच तनाव-शैथिल्य और उनकी नई रेलवे परियोजनाओं वाले ठीक इस समय, नेपाल एक गंभीर राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। वहां के कथित क्रुद्ध युवा नेपालियों ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए हिंसा, तोड़-फोड़ और आगज़नी का जो तांडव रचा, उससे नेपाल की राजनीतिक स्थिरता चरमरा गई है। कुछ लोग इस अशांति को अमेरिकी मीडिया और तथाकथित डीप स्टेट द्वारा भड़काया गया बताते हैं।
 
जो भी हो, वर्तमान भयावह स्थिति से उबरने और अपने यहां विदेशी निवेश आकर्षित करने में नेपाल को अब काफ़ी समय लगेगा। चीन और भारत, नेपाल में अपनी प्रतिस्पर्धी रेलवे परियोजनाओं को आगे बढ़ाने से पहले प्रतीक्षा करना और देखना चाहेंगे कि नेपाल में सार्वजनिक जीवन और सररकारी प्रशासन की दिशा और दशा क्या कहती है। फिलहाल तो नेपाल के इन दोनों पड़ोसियों की वहां के लिए बनी रेलवे परियोजनाओं पर
संकट के काले बादल घिर गए हैं।
 
रेलवे एक संपर्क-सेतु : नेपाल वास्तव में दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले भारत और चीन के बीच पारस्परिक रेल संपर्क का एक महत्वपूर्ण सेतु बन सकता है। भारत की सहमति होने पर चीन पहली बार जमीनी रास्ते से हिंद महासागर तक पहुंच सकता है। भारत भी अपने व्यापारिक माल-सामान, नेपाल के रास्ते से चीन और उससे सटे रूस तक भेज सकता है। इस तरह 4 देश (भारत, नेपाल, चीन और रूस) थल मार्ग से आपसी लेनदेन और व्यापार कर सकते हैं। आज सैन्य तैनाती को सुगम बनाने के लिए बनाए गए रेल संपर्क कल व्यापार और पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं। यदि ऐसा हो सका, तो यह बात एक प्रशंसनीय भू-राजनीतिक कथा बन जायेगी।
 
भारत ने इस बीच एक दूसरी योजना साकार करने की ठान ली है — हिमालय की गोद में बसे भूटान को दो रेल मार्गों के द्वारा अपने साथ जोड़ने की, ताकि दोनों पड़ोसी देशों के बीच यात्री आवागमन और माल परिवहन सरल बने। दोनों रेल मार्ग बिजलीकृत होंगे और लगभग 4 वर्षों के भीतर, कुल मिलाकर 45 करोड़ 40 लाख डॉलर (लगभग 40 अरब रुपए) की लागत से बनेंगे। एक रेलवे लाइन 69 किलोमीटर लंबी होगी, वह भारत के कोकराझार को 10 हज़ार की जनसंख्या वाले भूटान के गेलेफू शहर से जोड़ेगी। पूर्वी दिशा में पड़ने वाली 20 किलोमीटर लंबी दूसरी रेलवे लाइन भारत के बनरहाट को भूटान के औद्योगिक नगर सामत्से से जोड़ेगी। लगभग 8 लाख की जनसंख्या वाले देश भूटान के उत्तर में चीन अधिक़ृत तिब्बत है और दक्षिण में भारत का आसाम राज्य। भूटान के पास अपनी कोई रेल सेवा नहीं है।

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