उन्होंने कहा कि भारत की आबादी करोड़ों में हैं, लेकिन इसके लोगों को ग्रीन कार्ड दिए जाने की संख्या आइसलैंड की आबादी के बराबर है। एच-1बी वीजा पर कोई सीमा नहीं है और यहां एच-1बी वीजा पर काम करने के लिए आने वालों में 50 प्रतिशत भारतीय हैं। एच-1बी और ग्रीन कार्ड के बीच विसंगति से प्रमाणपत्र पाने वालों की कतार लंबी होती जा रही है और इसका हमारे पेशेवर और निजी जीवन पर असर पड़ रहा है।
भारतीय आईटी पेशेवर इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं। उन्होंने सांसद जो लोफग्रेन से इस संबंध में एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश करने की अपील की जिससे कि दक्ष पेशेवरों की परेशानी का हल हो। बाल एवं किशोर मनोचिकित्सक डॉ. नमिता धीमान ने कहा कि ग्रीन कार्ड के लिए लंबे इंतजार से अग्रिम मोर्चे के स्वास्थ्यकर्मियों एवं उनके परिवारों पर असर पड़ा है। वे दहशत और डर में जी रहे हैं।