दुनिया के एयर ट्रैफिक मैप को देखें, तो आसमान में उड़ते हज़ारों विमानों के बीच कुछ विशाल खाली क्षेत्र साफ नज़र आते हैं। ये 'नो-फ्लाई ज़ोन' या 'ब्लैक होल' वो इलाके हैं, जहाँ युद्ध, क्षेत्रीय तनाव या प्राकृतिक आपदाओं के कारण विमानों की सुरक्षा को गंभीर खतरा है। हाल ही में मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव ने हवाई यातायात को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे कई हवाई रास्ते पूरी तरह खाली हो गए हैं। सीएनएन की एक विस्तृत रिपोर्ट में इस संकट को 'आसमान में बढ़ती अनिश्चितता' का नाम दिया गया है, जो वैश्विक उड्डयन उद्योग के लिए एक बड़ा अलार्म है।
संघर्ष बना नई वास्तविकता : एविएशन कंसल्टेंट ब्रेंडन सोबी के हवाले से सीएनएन की रिपोर्ट बताती है कि यूक्रेन-रूस युद्ध, मध्य पूर्व के तनाव और अन्य क्षेत्रीय संघर्षों के कारण हवाई क्षेत्रों का बंद होना अब एयरलाइंस के लिए 'नई सामान्य स्थिति' बन चुका है। FlightRadar24 जैसे लाइव एयर ट्रैफिक मैप्स इसकी पुष्टि करते हैं। यूक्रेन, इराक, ईरान और कुछ अन्य देशों के ऊपर का आसमान लगभग खाली है। ज़्यादातर उड़ानें अब पड़ोसी देशों जैसे तुर्की, सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात के संकरे और भीड़-भाड़ वाले हवाई गलियारों से होकर गुज़र रही हैं। ये बदलाव न केवल उड़ानों की समय-सारिणी को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यात्रियों और एयरलाइंस दोनों के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर रहा है।
आर्थिक और परिचालन चुनौतियाँ : हवाई रास्तों के बंद होने का सबसे बड़ा असर एयरलाइंस की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। रास्ता बदलने से उड़ानें लंबी हो रही हैं, जिससे ईंधन की खपत बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, लंदन से हांगकांग की उड़ान में अब दो अतिरिक्त घंटे लग रहे हैं। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, एक बोइंग 777 विमान एक घंटे में करीब 7,000 डॉलर (लगभग 5.8 लाख रुपये) का ईंधन खर्च करता है। इसके अलावा, लंबी उड़ानों के कारण क्रू को अतिरिक्त समय देना पड़ता है, नए हवाई क्षेत्रों के लिए शुल्क चुकाना पड़ता है, और टिकट रद्द होने से भी भारी नुकसान होता है।
इसके साथ ही यात्रियों को भी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। उड़ानें देर से चल रही हैं, और कई बार तो पूरी तरह रद्द हो रही हैं। मध्य पूर्व के तनाव के कारण कई यूरोपीय और एशियाई एयरलाइंस ने इस क्षेत्र से अपनी उड़ानें कम कर दी हैं, जिससे टिकटों की कीमतें भी बढ़ गई हैं। एक यात्री के अनूसार "40,000 फीट की ऊँचाई पर भी, हम ज़मीन पर हो रहे युद्धों और तनावों की सजा भुगत रहे हैं।"
युद्ध से भी बड़ा खतरा: प्राकृतिक आपदाएँ : हालांकि युद्ध और संघर्ष हवाई यातायात के लिए बड़ी चुनौती हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक आपदाएँ, खासकर ज्वालामुखी विस्फोट, इससे भी ज़्यादा खतरनाक हो सकते हैं। ज्वालामुखी की राख में मौजूद सिलिका कण विमान के जेट इंजन को जाम कर सकते हैं, जिससे इंजन पूरी तरह बंद हो सकता है। सीएनएन की रिपोर्ट में 2010 के आइसलैंड के एयजाफजाल्लजोकुल ज्वालामुखी विस्फोट का उदाहरण दिया गया है, जिसने यूरोप के हवाई यातायात को ठप कर दिया था। इस घटना ने 10 मिलियन यात्रियों को प्रभावित किया और एयरलाइंस को 1.8 बिलियन डॉलर (करीब 15,000 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ।
हाल के वर्षों में इंडोनेशिया और अलास्का जैसे ज्वालामुखी गतिविधियों वाले क्षेत्रों में भी ऐसी घटनाएँ देखी गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ज्वालामुखी विस्फोट की भविष्यवाणी करना मुश्किल होता है, और इसका असर हफ्तों तक रह सकता है, जिससे वैश्विक उड्डयन उद्योग को भारी नुकसान हो सकता है।
एयरलाइंस की रणनीति और भविष्य : इन चुनौतियों से निपटने के लिए एयरलाइंस नई रणनीतियाँ अपना रही हैं। कई कंपनियों ने अपने रास्तों को फिर से डिज़ाइन किया है, और कुछ ने तो वैकल्पिक हब्स विकसित करने शुरू कर दिए हैं। हालांकि, ये उपाय लागत को पूरी तरह कम नहीं कर पा रहे हैं। सीएनएन की रिपोर्ट में एक एविएशन एनालिस्ट ने कहा, "एयरलाइंस को अब हर समय 'प्लान बी' तैयार रखना पड़ता है, क्योंकि आसमान की अनिश्चितता बढ़ती जा रही है।"
आसमान में उड़ान भरने वाले विमान भले ही 40,000 फीट की ऊँचाई पर हों, लेकिन वे ज़मीन की राजनीति, युद्ध और प्रकृति की मार से अछूते नहीं हैं। मध्य पूर्व के तनाव, यूक्रेन युद्ध और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने हवाई यातायात को पहले से कहीं ज़्यादा जटिल बना दिया है। सीएनएन की रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि वैश्विक उड्डयन उद्योग को इन दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिए न केवल तकनीकी नवाचार, बल्कि बेहतर योजना और सहयोग की भी ज़रूरत है। अन्यथा, खाली पड़े हवाई रास्ते और बढ़ते जोखिम आने वाले समय में यात्रियों और एयरलाइंस दोनों के लिए और बड़ी समस्या बन सकते हैं। Edited By: Navin Rangiyal