विदेशी मंत्री सुषमा स्वराज ने 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में आए भारतीय मीडिया के प्रतिनिधियों से बातचीत के दौरान कहा कि केन्द्र सरकार का देश के हर राज्य में पाणिनि प्रयोगशाला खोलने का विचार है ताकि युवा पीढ़ी हिन्दी, तेलगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम समेत अन्य भारतीय भाषाओं को सीख सकें।
उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए किसी को बाध्य करना या दबाव बनाना सही नहीं है। लोगों में स्वत: भाषा सीखने की रुचि होनी चाहिए। श्रीमती स्वराज ने कहा कि देश में भाषा-शिक्षण से सम्बन्धित नीति 'त्रिभाषा सूत्र' बनाई गई थी जिसमें हिन्दीभाषी राज्यों में दक्षिण की कोई भाषा पढ़ाने के संबंध में संस्तुति की गई।
इसके तहत कई हिन्दीभाषी राज्यों ने दक्षिण की एक भाषा को अपने राज्य में पढ़ाने के लिए चुना भी था, लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि यह अच्छा होगा कि हिन्दीभाषी राज्यों के लोग दक्षिण की कोई भाषा सीखें और दक्षिण भारत के लोग भी अपनी मातृभाषा के साथ हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं को सीखें। इसमें पाणिनि भाषा प्रयोगशाला काफी मददगार साबित हो सकती है।
गौरतलब है कि त्रिभाषा सूत्र को वर्ष 1956 में अखिल भारतीय शिक्षा परिषद ने इसे मूल रूप में अपनी संस्तुति के रूप में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में रखा था और मुख्यमंत्रियों ने इसका अनुमोदन भी कर दिया था। वर्ष 1968 राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसका समर्थन किया गया था और वर्ष 1968 में ही पुन: अनुमोदित कर दिया गया था।
वर्ष 1992 में संसद ने इसके कार्यान्वयन की संस्तुति कर दी थी। यह संस्तुति राज्यों के लिए बाध्यता मूलक नहीं थी, क्योंकि शिक्षा राज्यों का विषय है। वर्ष 2000 में यह देखा गया कि कुछ राज्यों में हिन्दी और अंग्रेजी के अतिरिक्त इच्छानुसार संस्कृत, अरबी, फ्रेंच तथा पोर्चुगीज भी पढ़ाई जाती हैं।
त्रिभाषा सूत्र में पहली, शास्त्रीय भाषाएं जैसे संस्कृत, अरबी, फारसी। दूसरी राष्ट्रीय भाषाएं और तीसरी आधुनिक यूरोपीय भाषाएं शामिल हैं। इन तीनों श्रेणियों में किन्हीं तीन भाषाओं को पढ़ाने का प्रस्ताव है। संस्तुति यह भी है कि हिन्दीभाषी राज्यों में दक्षिण की कोई भाषा पढ़ाई जानी चाहिए। (वार्ता)