सलमान रुश्दी जर्मनी में सम्मानित, 1989 में जारी हुआ था मौत का फतवा

Salman Rushdie honored in Germany: भारतीय-ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी को जर्मन पुस्तक व्यापार संघ का इस वर्ष का शांति पुरस्कार मिला है। पुरस्कार से उन्हें सम्मानित करने के लिए फ्रैंकफर्ट के सेंट पॉल चर्च में रविवार, 22 अक्टूबर को एक भव्य समारोह का आयोजन हुआ।
 
फ्रैंकफर्ट में ही हर वर्ष अक्टूबर में होने वाले जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के दौरान दिया जाने वाला यह पुरस्कार, रुश्दी से पहले भारत के राष्ट्रपति रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन को और कुछ वर्ष पूर्व अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कर पा चुके अमर्त्य सेन को भी उनके लेखन कार्यों के महत्वों को देखते हुए मिल चुका है।  
 
76 वर्षीय रुश्दी ने फ्रैंकफर्ट के सेंट पॉल चर्च में हुए एक विशेष समारोह में उपस्थित आमंत्रितों की तालियों के बीच 25,000 यूरो की पुरस्कार राशि स्वीकार की। जर्मन पुस्तक व्यापार संघ के इस वार्षिक पुरस्कार को देश के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कारों में गिना जाता है। इस पुरस्कार से ऐसे लोग सम्मानित किए जाते हैं, जिन्होंने अपने लेखन एवं चिंतन द्वारा विश्व शांति के विचार को साकार करने में योगदान दिया है।
 
स्वास्थ्य गिर गया है : इस समारोह के साथ ही इस वर्ष के 75वें फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले का समापन भी हुआ है। अगस्त 2022 में अमेरिका में हुए सलमान रुश्दी की हत्या के प्रयास के बाद से अब उन्हें केवल एक ही आंख से काम चलाना पड़ता है। उनका स्वास्थ्य गिर गया है। उन्हें चलने-फिरने और बोलने में भी कठिनाई होती दिखी। तब भी अपने संक्षिप्त संबोधन में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा का आह्वान करते हुए कहा, 'हम ऐसे समय में रह रहे हैं, जिसके बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इससे गुजरना पड़ेगा' 
 
'एक ऐसा समय जिसमें स्वतंत्रता –– विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जिसके बिना किताबों की दुनिया का अस्तित्व हो ही नहीं सकता –– उस पर हर तरफ से प्रतिक्रियावादी, अधिनायकवादी, लोकलुभावन, जन-भड़काऊ, आत्ममुग्ध, अर्ध-शिक्षित, अहंकारी और लापरवाह क़िस्म की आवाज़ों द्वारा हमला किया जा रहा है।' 
 
आज के समय की चुनौतियां : सलमान रुश्दी के अनुसार, 'यह ऐसा समय है, जब शैक्षणिक संस्थानों और पुस्तकालयों को सेंसरशिप और शत्रुता का सामना करना पड़ेगा। जब चरमपंथी धर्म और कट्टरपंथी विचारधाराएं जीवन के उन क्षेत्रों में प्रवेश करना शुरू कर देंगी जहां उनका कोई काम नहीं है।' अतः 'बुरे वक्तव्यों का अच्छे वक्तव्यों द्वारा सामना करना' जारी रखना होगा। रुश्दी का कहना है कि ऐसा करने के लिए आपको झूठी कथा-कहानियों का मुकाबला बेहतर कथा-कहानियों से करना होगा। घृणा का उत्तर प्रेम से देना होगा। यह उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए कि 'झूठ के समय में भी सच्चाई की जीत हो सकती है।'
 
पुरस्कार समारोह में, जर्मन पुस्तक व्यापार संघ की प्रमुख कारिन श्मिट-फ़्रीडरिश ने रुश्दी को एक ऐसा व्यक्ति बताया, जिससे हम सीख सकते हैं कि साहस क्या है।... उन्हें उनकी अदम्यता के लिए पुरस्कार मिला है। वे विचार और बोलने की स्वतंत्रता के सबसे उत्साही समर्थकों में से एक हैं। वे भारी 'व्यक्तिगत जोखिम की क़ीमत' पर ऐसा कर रहे हैं।
 
हत्या का फ़तवा : 1947 में मुंबई में जन्मे सलमान रुश्दी का नाम सबसे पहले 1981 में प्रकाशित उनकी पुस्तक 'मिडनाइट चिल्ड्रेन' से प्रसिद्ध हुआ था। 1989 में, तत्कालीन ईरानी क्रांतिकारी नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी के उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेज' के कारण उनकी हत्या का फ़तवा जारी किया। फ़तवे के बाद दस वर्षों से अधिक समय तक रुश्दी पुलिस की निरंतर देखरेख में विभिन्न स्थानों पर छिपे रहे। 2022 में अमेरिका में वहां रहने वाले एक लेबनानी अरबी युवक द्वारा अपने ऊपर चाकू से हुए हमले में वे गंभीर रूप से घायल हो गए। तभी से उनकी एक आंख की रोशनी चली गई है। 
 
सलमान रुश्दी को जर्मनी के पुस्तक व्यापार संघ द्वारा शांति पुरस्कार देने का स्वागत करने के साथ-साथ कुछ साहित्य समीक्षकों का यह भी कहना है कि उन्हें यह पुरस्कार बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। ऐसे लोगों का मानना है कि उन्हें यह पुरस्कार बहुत पहले शायद इसलिए नहीं दिया गया कि ऐसा करने से मुस्लिम देश कहीं नाराज़ न हो जाएं और अपने प्रकाशकों को फ्रैंकफ़र्ट के पुस्तक मेले में भाग लेने से रोक न दें। समझा जाता है कि कुछ इसी प्रकार की सोच-समझ के कारण रुश्दी को साहित्य का दुनिया का सबसे नामी नोबेल पुरस्कार भी आज तक न तो मिला है और न भविष्य में भी शायद कभी मिलेगा।
 

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