शोधकर्ताओं ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि जून और जुलाई में हुए तीन दिवसीय प्रयोग के दौरान मरीजों में लगाए गए हृदयों ने तीन दिनों तक सही ढंग से काम किया। इन मरीजों को वेंटीलेटर का इस्तेमाल करके जिंदा रखा गया। इस प्रयोग का सफल होना इस वजह से भी बड़ी बात है कि इसी साल मार्च में महीने में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसे जनवरी में ऑपरेशन के जरिए सूअर का दिल लगाया गया था।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने पहले एक विशेष उपकरण का इस्तेमाल करते हुए पहले सूअरों के ह्रदय में पाए जाने वाले वायरस की जांच की, जिसके बाद जून में सूअर के दिल को एक मरीज में ट्रांसप्लांट किया गया, इसी तरह दूसरे मरीज में सूअर का दिल करीब 2 माह के बाद 6 जुलाई को ट्रांसप्लांट किया गया। दोनों मरीजों को सर्जरी के बाद वेंटीलेटर पर रखा गया, जहां उनकी 72 घंटों तक निगरानी की गई। शोधकर्ताओं ने बताया कि दोनों मरीजों में ट्रांसप्लांट किए गए हृदयों ने 3 दिनों तक ठीक ढंग से काम किया।
यूनिवर्सिटी के शोध निदेशक डॉ. मोआजामि ने बताया कि किसी मानव के भीतर एक सूअर के दिल को धड़कते हुए देखना आश्चर्यचकित कर देने वाला अनुभव है। दुनियाभर के लाखों लोगों को प्रतिदिन ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की जरूरत पड़ती है और इन अंगों की कमी मानवजाति के लिए एक बड़ी समस्या है। ऐसे में सूअर के अंगों को एक संभावित विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। इस शोध पर अमेरिका के पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने बयान दिया है कि अगर अंगदान करने वाले लोग अधिक लोग होते तो जानवरों की आवश्यकता नहीं पड़ती।