चीनी राष्ट्रपति कहां नदारद हैं? G20 में अनुपस्थिति चर्चा का विषय

G20 Summit in India: नई दिल्ली के G-20 शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अप्रत्याशित अनुपस्थिति से अंतरराष्ट्रीय समुदाय हैरान है। इसके कारणों के बारे में पश्चिमी जगत में कई प्रकार की अटकलें लागाई जा रही हैं। 
 
चीन G-20 वाले शिखर सम्मेलनों को ऐसे मंच के तौर पर देखता रहा है, जो उसके लिए भी इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस मंच पर जिन विकसित एवं विकासशील देशों के शीर्ष नेता एकत्रित होते हैं, वे देश वस्तुओं और सेवाओं के रूप में सकल वैश्विक उत्पाद में कुल मिलाकर लगभग 80 प्रतिशत के बराबर योगदान देते हैं। चीन स्वयं भी क्योंकि अमेरिका के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, अतः दुनिया के बड़े-बड़ों के साथ उस का भी मिलना-जुलना होना चाहिए। चीन के राष्ट्रपति और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वेसर्वा शी जिनपिंग स्वयं भी हर G-20 शिखर सम्मेलन में पहुंचते रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के G-20 शिखर सम्मेलन में इस बार उनकी जगह उनके प्रधानमंत्री का आना संदेहों और अटकलों का विषय तो बनना ही था और बना भी।
 
यूरोपीय मीडिया पर्यवेक्षक चीनी राष्ट्रपति की दिल्ली में अनुपस्थित के पीछे एक-दूसरे से जुड़े कई ऐसे कारण देखते हैं, जो एक बार फिर चीन की विस्तारवादी आक्रामता के प्रति सावधानी बरतने की मांग करते हैं।
 
चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट : शी के शासनकाल में चीन में आर्थिक 'सुधार' की जगह देश की कथित 'सुरक्षा' को सर्वोच्च प्राथमिकता मिल गई है। शी जिनपिंग के लिए सुरक्षा का मतलब है, चीन और उसके लोगों पर खुद भी और अपनी कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा भी कड़ी निगरानी रखना। शी अपने साम्राज्य की सीमाओं तक ही नहीं रह जाना चाहते, बल्कि सैन्य बलप्रयोग द्वारा एशिया में चीन की सीमाओं का सतत विस्तार करना चाहते हैं।
 
भारत बन रहा है राह का रोड़ा : इन पर्यवेक्षकों के अनुसार, शी के विस्तारवादी सपनों को साकार करने में एशिया की दूसरी महाशाक्ति भारत बन रहा है उनकी राह का रोड़ा। हिमालय की बर्फ पिघलने से बने पानी तक पहुंच पाने के लिए शी भारत के एक बड़े भूभाग को हड़पना चाहते हैं। सियाचिन क्षेत्र की गलवान घाटी में हुई झड़पों और G20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले नए दावों वाले आधिकारिक चीनी नक्शों के प्रकाशन को यूरोपीय मीडिया पर्यवेक्षक इस का प्रमाण मानते हैं। अतः जिस भारत के विरुद्ध शी के क्षेत्रीय दावे हों, उसकी भूमि पर खड़े होकर वे उसकी ऐसी कोई सराहना भला कैसे करते-सुनते, जो दिल्ली में अन्य देशों के नेताओं द्वारा होनी सुनिश्चित थी।
  
यूरोपीय मीडिया भी अब इसे मानने लगा है चीन से बढ़ते खतरे के कारण – एशिया के सभी देशों की तरह भारत के लिए भी – अमेरिका के साथ निकटता समय की मांग बन गई है। शी जिनपिंग की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाएं भारत के अलावा वियतनाम, फिलीपींस, ताइवान, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए भी चिंतनीय खतरा बन गई हैं। 
 
शी विश्वसनीय नहीं हैं : G-20 एक बहुपक्षीय मंच है। वह एक ऐसी विश्व व्यवस्था का पक्षधर है, जिसमें सिर्फ अमेरिका की ही बात नहीं चलती, जैसा कि शी बार-बार आरोप लगाते हैं। दिल्ली में उनकी अनुपस्थिति का यूरोपीय मीडिया पर्यवेंक्षकों के लिए मतलब यही था कि शी का चीन एक नियम-आधारित, विश्वसनीय व्यवस्था से दूर, एक ऐसी दुनिया की ओर जा रहा है, जिसमें ताक़तवर की मर्ज़ी ही सर्वोपरि क़ानून है। 
 
यूरोपीय मीडिया पर्यवेक्षक कह रहे हैं कि शी की मनभावन दुनिया वही है, जो मॉस्को से लेकर प्योंगयांग और तेहरान तक फैली हुई है। उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है कि अपने देश की छवि वे दुनिया में एक शांतिपूर्ण और भरोसेमंद देश वाली बनाएं। पिछले एक दशक में उन्होंने अपनी सैन्य तैयारियों पर खूब खर्च किया है, पर दुनिया को हमेशा यही पट्टी पढ़ाई है कि उनका देश तो शांतिपूर्ण प्रगति के लिए प्रयत्नशील है। बर्लिन और यूरोप की अन्य राजधानियों में, इस परीकथा पर आंख मूंदकर विश्वास भी कर लिया गया। 
 
युद्ध की ओर इशारा : पर्यवेक्षक अब यह मानते हैं कि चीन के सारे हाव-भाव युद्ध की ओर इशारा कर रहे हैं। शुरुआत शी द्वारा ही किए जाने की संभावना है। शी की कट्टर सोच के कारण चीनी अर्थव्यवस्था भी अब उबर नहीं पा रही। उन्होंने चीन को वहां की हान जाति की श्रेष्ठता वाली कट्टर राष्ट्रवादी भावना से भर दिया है (भारत के मार्क्सवादी व वामपंथी इस पर ध्यान दें)। इस भावना के चलते देश और विदेश के अन्य जातीय समूह चीनियों के लिए शत्रु समान हो गए हैं। जर्मन तानाशाह हिटलर नें भी अपने समय में जर्मनों की जातीय श्रेष्ठता का ऐसा ही नारा दिया था, जबकि वह मार्क्सवादी नहीं, फासीवादी था। 
 
चीन पर नज़र रखने वाले अन्य मीडिया पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि चीनी राष्ट्रपति के नई दिल्ली से दूर रहने में हो सकता है कि उनके स्वास्थ्य की कोई भूमिका हो। शी ने हालांकि तीन ही सप्ताह पूर्व, 22 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग में हुए भारत, रूस, चीन, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के 15वें वार्षिक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया था। लेकिन पहली बार इस सम्मेलन को स्वयं संबोधित नहीं किया। उनका भाषण उनके साथ आए चीनी वाणिज्य मंत्री वांग वेन्ताओ ने पढ़कर सुनाया। 
 
जोहानेसबर्ग के बाद से कहीं दिखे नहीं : शी जोहानेसबर्ग सम्मेलन के शीर्ष नेताओं के सामूहिक भोज में तो देखे गए, पर उन्होंने अपना भाषण स्वयं क्यों नहीं पढ़ा, यह रहस्य अब तक बना हुआ है। प्रेक्षकों का मत है कि हो सकता है कि शी की तबीयत ठीक नहीं रही हो। इन प्रेक्षकों ने यह भी नोट किया है कि शी जिनपिंग को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद से सार्वजनिक तौर पर कहीं भी देखा नहीं गया है। उनके विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री तो गायब बताए जा ही रहे थे, वे स्वयं भी कई सप्ताहों से नदारद हैं। शी ही नहीं, चीन का हर नामी नेता किसी प्रमुख अवसर के बहाने अपने आप को जनता के सामने पेश करने और मीडिया में जगह बनाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देता। 
जहां तक नई दिल्ली में हुए G-20 शिखर सम्मेलन का प्रश्न है, तो इस सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति की आकस्मिक अनुपस्थिति का बड़ा कारण अधिकांश प्रेक्षक यही मानते हैं कि वे भारत में तेजी से हो रही चौमुखी प्रगति, भारत की बढ़ती हुई अंतरराष्ट्रीय ख्याति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल और देश-विदेश में उनकी बढ़ती हुई मान्यता से निश्चित रूप से जलते होंगे। वे निश्चित रूप से जानते होंगे कि जहां वे भी होंगे और मोदी भी, वहां सारा शो मोदी चुरा ले जाएंगे। वह जगह यदि मोदी की अपनी ही ज़मीन हुई, तब तो खेल ख़तम ही समझो। ऐसे में जानबूझ कर अपनी किरकिरी क्यों कराई जाए।
 
बगुला-भगती कब तक चेलेगी : जोहानेसबर्ग में तो शी जिनपिंग के लिए भलीभांति जाने-पहचाने केवल चार ही दूसरे चेहरे थे। वह ज़मीन भी भारत की तरह किसी ऐसे देश की नहीं थी, जिससे चीन की लंबी दुश्मनी हो। नई दिल्ली में प्रश्न पूछते कम से कम 19 चेहरे होते। सभी चेहरे यही पूछते लगते कि यूक्रेन में रूसी-चीनी मिलिभगत का अंत भला कब होगा? तुम्हारी बगुला-भगती कब तक चेलेगी? तुमने अपने साम्राज्य का और अधिक विस्तार करने वाला जो नया नक्शा अभी-अभी प्रकाशित किया है, उसके माध्यम से दुनिया को किस शांति और मैत्री का संदेश दे रहे हो?  
  
हवा का रुख चीन के अनुकूल नहीं है। शी जिनपिंग का स्वास्थ्य यदि नहीं भी खराब हो, तब भी हवा का रुख देखकर उन्हें यही उचित लगा होगा कि दिल्ली से अभी दूर ही रहो।
 

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