Artificial Intelligence : वरदान या अभिशाप?

WD Feature Desk

मंगलवार, 26 अगस्त 2025 (17:54 IST)
- तनूजा चौबे 
प्रस्तावना
आज की दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तेजी से अपने पाँव पसार रही है। यह तकनीक शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, संचार, यहाँ तक कि व्यक्तिगत जीवन तक में प्रवेश कर चुकी है। सवाल यह उठता है कि क्या यह विकास सही दिशा में है, या इसके कुछ दुष्परिणाम भी समाज को झेलने पड़ेंगे? यही कारण है कि बुद्धिजीवी वर्ग में यह विषय लगातार बहस का केंद्र बना हुआ है!

सकारात्मक पहलू
एआई को तकनीकी क्रांति कहा जा सकता है। जिन लोगों की बौद्धिक क्षमता औसत से कम है, उनके लिए भी यह नई संभावनाओं के द्वार खोल रही है। अब किसी भी क्षेत्र में टिके रहने के लिए उतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती जितनी पहले आवश्यक थी। एआई मानसिक क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही है और जीवन को सहज बना रही है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में एआई का योगदान उल्लेखनीय है। आज रोबोट डॉक्टरों की मदद कर रहे हैं और जटिल शल्य-चिकित्साओं को सरल बना रहे हैं। शोधकर्ता ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं जिनमें रोबोटिक गर्भ में भी शिशु का विकास संभव हो सके। यह बदलाव मानव जीवन के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।
व्यापार क्षेत्र में सोलो प्रीमियर जैसे ट्रेंड सामने आ रहे हैं, जहाँ रिसर्च से लेकर सेल्स तक का काम कृत्रिम बुद्धिमत्ता कर रही है। यह केवल समय और मेहनत की बचत ही नहीं करता, बल्कि पैसों की बचत का माध्यम भी बन रहा है। वॉशिंगटन के एक इंजीनियर द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर इसका उदाहरण है, जो अंतिम संस्कार की योजना और उससे जुड़े दस्तावेज़ों को सुरक्षित रखने का कार्य कर रहा है।

चुनौतियाँ और दुष्परिणाम
हालाँकि एआई के फायदे अनेक हैं, लेकिन इसके नकारात्मक पहलू भी नज़रअंदाज़ नहीं किए जा सकते। सर्वेक्षणों से यह सामने आया है कि करियर को लेकर छात्रों में असमंजस बढ़ रहा है। कई छात्र पढ़ाई बीच में छोड़कर सीधे स्टार्टअप्स या बड़ी टेक कंपनियों से जुड़ रहे हैं। इससे शिक्षा प्रणाली प्रभावित हो रही है और करियर का संतुलन बिगड़ रहा है।
एआई का डार्क साइड यह है कि कुछ लोग इसके भ्रम में पड़कर स्वयं को समय से पहले सफल मान लेते हैं। जब वास्तविक जीवन में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिलती, तो वे हताश होकर मानसिक विकारों का शिकार हो जाते हैं। कई बार यह स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि वे अपनी जान तक जोखिम में डाल देते हैं। यह पहलू समाज के लिए चिंता का विषय है।

आवश्यक सीमाएँ
किसी भी तकनीक की सफलता इस पर निर्भर करती है कि उसका उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है। यदि एआई का अतिरेक होगा, तो यह हमारी सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि इसके उपयोग के लिए स्पष्ट सीमाएँ तय की जाएँ, ताकि यह समाज के लिए वरदान साबित हो सके, न कि अभिशाप!

निष्कर्ष
अंततः यह स्पष्ट है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता केवल एक तकनीकी साधन नहीं, बल्कि मानवीय सभ्यता के लिए एक नए युग की शुरुआत है। यह हमें तेज़, सक्षम और रचनात्मक बना सकती है, बशर्ते हम इसका विवेकपूर्ण उपयोग करें। यदि हमने संतुलन साध लिया तो एआई हमारी सोच और कार्यशैली को उच्चतम स्तर तक ले जाएगी; लेकिन यदि हम इसके अंधे अनुयायी बन गए, तो यह हमारी बौद्धिक क्षमता और मानवीय मूल्यों को क्षीण कर सकती है।

इसलिए समाज के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है—एआई को साधन बनाएँ, सहारा नहीं। तभी यह क्रांतिकारी बदलाव हमारे भविष्य को उज्ज्वल दिशा में मोड पाएगा!
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