इस शोध का नेतृत्व करने वाले इसराइल में हैफा विश्वविद्यालय के एरी किजेल ने इस बात की जांच की कि युवा लोग किस तरीके से इस आभासी दुनिया का इस्तेमाल करते हैं। इस शोध में 16-17 वर्ष की आयु वाले आठ युवाओं के दो समूह और 14-15 उम्र वाले आठ युवाओं के दो समूह शामिल किए गए। समूहों में लड़के और लड़कियों की संख्या बराबर रही। प्रतिभागियों ने क्लास व्हाट्सएप ग्रुप से लिए संदेशों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि व्हाट्सएप एक ऐसी जगह है जहां वे निजी बातें कर सकते हैं जिसकी सुविधा अन्य प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं है।
‘ज्यूइश प्रेस’ ने किजेल के हवाले से कहा कि अध्ययन में भाग लेने वाले किशोरों ने व्हाट्सएप को एक ऐसी जगह बताया जहां भाषा के लिए सम्मान है और जहां सभी एक जैसे शब्द और संकेतों का इस्तेमाल करते हैं। ग्रुप चैट उसमें शामिल लोगों के बीच भरोसे पर आधारित है और यह बात संपर्क में बने रहने की संभावना बढ़ाती है। व्हाट्सएप ग्रुप एक ऐसी चीज है जो स्कूल में बनाए गए श्रेणीबद्ध विभाजन को तोड़ती है।
अध्ययन दिखाता है कि स्कूल में कक्षाएं एक निर्धारित समूह में बंटी होती है, स्कूल में एक ही आयु वर्ग से दोस्ती होती है, सामाजिक आर्थिक, साझा गतिविधियों या पढ़ाई-लिखाई के आधार पर बच्चों को वर्गीकृत किया जाता है। व्हाट्सएप इन विभाजनों को तोड़ता है और एक ही क्लास तथा एक जैसे व्यवहार का समूह बनाता है। अध्ययन में यह भी पता चला कि युवाओं का मानना है कि ऑइकन और इमोजी का इस्तेमाल शारीरिक हाव-भाव से ज्यादा अच्छा है।