जनसांख्यिकीय परिवर्तन और इसके कारण
कई प्रदेशों की कुल आबादी में हिंदुओं का अनुपात तेजी से कम हुआ है, जबकि कुछ अन्य समुदायों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। इन जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
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ऐतिहासिक और भौगोलिक कारक: पूर्वोत्तर के कई राज्यों में ईसाई धर्म का प्रसार ब्रिटिश काल से शुरू हुआ और स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहा, खासकर जनजातीय समुदायों के बीच। जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी की ऐतिहासिक जड़ें गहरी हैं।
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प्रजनन दर: विभिन्न धार्मिक समुदायों की प्रजनन दरों में अंतर भी जनसांख्यिकीय बदलावों में भूमिका निभाता है।
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प्रवासन: आंतरिक और बाहरी प्रवासन भी किसी क्षेत्र की धार्मिक संरचना को प्रभावित कर सकता है।
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धर्मांतरण: कुछ क्षेत्रों में धर्मांतरण भी एक कारक हो सकता है, हालांकि इसका प्रभाव आमतौर पर सीमित होता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 'अल्पसंख्यक' की परिभाषा भारत में राष्ट्रीय स्तर पर तय की गई है, जिसके तहत मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। हालाँकि, कुछ राज्यों में, जहाँ हिंदू समुदाय संख्या में कम है, वहाँ उन्हें राज्य-स्तरीय अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग भी उठती रही है, ताकि वे अल्पसंख्यक समुदायों को मिलने वाले लाभों का उपयोग कर सकें।