क्षमावाणी का महान पर्व

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वैसे तो वर्ष भर में बहुत से त्योहार आते हैं। त्योहार के आगमन के साथ ही मनुष्य के मन में अच्छा पहनने, सजने-धजने और अच्छा दिखने, खाने की लालसा जागृत होने लगती है। लेकिन दसलक्षण का पर्युषण पर्व ऐसा त्योहार है जिसमें सभी का मन धर्म के प्रति ललचाता दिखाई देता है। किसी का मन उपवास के लिए तो किसी का एकाशन के लिए मचलता है।

पर्युषण पर्व जैन धर्मावलंबियों का आध्यात्मिक त्योहार है। पर्व शुरू होने के साथ ही ऐसा लगता है मानो किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। यह पर्व मैत्री और शांति का पर्व है। जो हमें 'जिओ और जीने दो' के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और मन के कषायों को दूर करके धर्म के प्रति मन में गहरी आस्था जगाता है।

जब एक जैन श्रावक भगवान महावीर के सूत्र 'सम्यक्‌ दर्शन, सम्यक्‌ ज्ञान, सम्यक्‌ चरित्र' का अनुसरण करने लगता है और ‍पर्व के इन 10 दिनों तक उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, आकिंचन एवं बह्मचर्य धर्म की आराधना करता है तो उनके भाव निर्मल बन जाते हैं और वह अपने अहंकार, क्रोध, कषाय, लोभ-लालच से दूर होकर सिर्फ धर्म की तरफ अपना ध्यान लगाए रहता हैं।

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इन दिनों में सभी श्रावक अपने दैनिक व्यवहार में यदि किसी के साथ बैरभाव या मनमुटाव हो भी जाता है तो तुरंत उसे भुला देते हैं और इस बात को ध्यान में रखते हैं कि पर्युषण महापर्व चल रहे है, इसमें कषाय पालना ठीक नहीं है। यह पर्व तो हमें कषायों से मुक्ति दिलाता है, यह वहीं पर्व है जो आपके सारे कर्मों को धोकर आपको पुण्य का मार्ग दिला सकता है। सभी जीवों को दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता।

अत: यह पर्व अपने आपमें ही क्षमा का पर्व है। इसलिए जिस किसी से भी आपका बैरभाव है, उससे शुद्ध हृदय से क्षमा मांग कर मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें। राग-द्वेष को अपने मन में स्थायी घर न बनाने दें। क्षमा से बैरभाव को शांत करें। क्रोध मनुष्य का शत्रु है और क्षमा ही सच्चा मित्र है। इस बात को हमेशा ध्यान में रखें। अतः क्षमा धारण करने वाला ही सच्चा जैन कहलाता है।

इसीलिए तो कहा जाता है 'क्षमा वीरस्य भूषणम्‌' अर्थात्‌ जिसने अपने राग-द्वेष, क्रोध, कषाय, अहंकार, लोभ-लालच आदि से मुक्ति पाकर अपने मन में क्षमा का अस्त्र धारण कर लिया हो। जहां मन में क्षमा भाव आ जाता है तो क्रोध, मान, माया, लोभ आदि सभी कषाय स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य प्रफुल्लित होकर सारे बैरभाव भूलकर क्षमा के रास्ते पर चल पड़ता है।

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भगवान महावीर हमेशा दो बातों को सबसे ज्यादा अपनाने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं- आपने कभी किसी का भला किया हो तो उसे भूल जाओ और दूसरा किसी ने आपका कुछ बुरा किया हो उसे भी भूल जाओ। केवल अच्छा दिखने के लिए नहीं, अच्छा बनने के लिए भी मन से परिश्रम करें। दूसरों के कल्याण के साथ-साथ अपने खुद के कल्याण यानी अपने आत्मकल्याण पर भी ध्यान दें। तभी आप सभी के प्रति एकसमान भावों को मन में धारण कर क्षमा करने योग्य बन सकेंगे।

जैन धर्म के पुराणों के अनुसार क्षमा धरती का वरदान है। राग, द्वेष व प्रतिशोध का किसी के पास भी हल नहीं है। मनुष्य को सहज भाव से अपनी भूलों का पश्चाताप करना चाहिए और दूसरों के साथ-साथ अपने आपको भी क्षमा करते हुए अपने कर्मों को सुधारना चाहिए। इसलिए प्रतिवर्ष आने वाले पर्युषण महापर्व पर सभी जैन समुदाय के लोग अपने पिछले सारे राग-द्वेष, कषायों को त्याग कर क्षमापना पर्व मनाते हैं।

पर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैन धर्मावलंबी अपने कषायों पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलकर अपने अगले भव को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। आइए! हम सभी अपने राग-द्वेष और कषायों को त्याग कर भगवान महावीर के दिखाए 'क्षमा' के मार्ग पर चलकर विश्व में अहिंसा और शांति का ध्वज फैलाएं। क्षमा करें और कराएं।

पर्युषण पर्व के महाअवसर पर आप सभी को क्षमा पर्व की शुभकामनाएं।

अंत में- 'जय जिनेंद्र! उत्तम क्षमा।'

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