स्नात्र पूजा की विधि

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प्राथमिक तैयारी

* प्रथम तीन गढके बदले तीन सुंदर पाट रखकर उस पर सिंहासन रखें।
* नीचे के पाट पर बीच में केसर का स्वस्तिक निकालें और उस पर चावल रखकर श्रीफल रखें।
* सिंहासन के बीच में केसर का स्वस्तिक निकालें और उस पर रुपये का सिक्का रखकर, तीन नवकार गिनकर उस पर धातु की प्रतिमाजी बिठाएँ।
* प्रतिमाजी के दाहिनी ओर, प्रतिमाजी की नाक की ऊँचाई तक घी का दीप रखें।
* बाद में स्नात्र पूजा करने वाले नाडाछडी बाँधकर हाथ में पंचामृत भरा हुआ कलश लेकर तीन नवकार गिन, प्रभुजी और सिद्धचक्रजी को * पक्षाल करें। (पंचामृत दूध, दही, शकर, घी और पानी का मिश्रण)
* फिर बालाकुंची करके पानी का पक्षाल कर तीन कपड़ों से अंग पोंछकर केसर से पूजा करें।
* बाद में हाथ धोकर खुद के दाहिने हाथ की हथेली में केसर का स्वस्तिक करें।
* बाद में स्नात्र करने वाले कुसुमांजलि का थाल लेकर खड़े रहें। (कुसुमांजलि- केसर, चावल और पुष्प का मिश्रण)


(पंडित श्री वीरविजयजी कृत)

(पहले कलश लेकर खड़े रहना)
काव्य (द्रुतविलंबित वृत्तम्‌)

सरस-शांति-सुधारस सागरं, शुचितरं गुणरत्नमहागरं ।
भविक-पंकज-बोध-दिवाकरं, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरं ॥1॥

(यहाँ प्रक्षाल करना)

॥ दोहा ॥

कुसुमाभरण उतारीने, पडिमा धरिये विवेक ।
मज्जन पीठे स्थापीने, करिये जल अभिषेक ॥2।

(कुसुमांजलि की थाली लेकर खड़े रहना)

॥ गाथा-आर्या गीति ॥

जिण जम्मसमये, मेरु सिहरे रयणकणयकलसेहिं ।
देवासुरेहिं न्हाविउं, ते धन्ना जेहिं दिठ्ठोसि ॥3॥

(प्रभुजी के दाहिने अँगूठे पर कुसुमांजलि रखना)
(नमोऽर्हत्‌ सिद्धाचार्य बोलना)

॥ कुसुमांजलि ढाल ॥

निर्मल जलकलशे न्हवरावे, वस्त्र अमूलक अंग धरावे ।
कुसुमांजलि मेलो आदिजिणंदा, सिद्धस्वरूपी अंग पखाली ॥4॥

आतम निर्र्मल हुई सुकुमालि, कुसुमांजलि मेलो आदि जिणंदा

(दाहिने अँगूठे पर कुसुमांजलि रखना)

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