गोस्वामी तुलसीदास के 10 प्रेरक विचार

WD Feature Desk

गुरुवार, 31 जुलाई 2025 (09:56 IST)
Goswami Tulsidas: तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं और दोहों के माध्यम से जीवन के गूढ़ रहस्यों और नैतिक मूल्यों को अत्यंत सरल भाषा में समझाया है। उन्होंने अपने विचारों से समाज को सही मार्ग दिखाया और रामभक्ति के माध्यम से लोगों के जीवन में शांति और आनंद का संचार किया। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें और उनके अनुपम योगदान को सादर स्मरण करते हैं। उनके कुछ प्रेरक विचार इस प्रकार हैं:ALSO READ: Tulsidas Jayanti: तुलसीदास के 3 चुनिंदा दोहे जिनमें छुपा है श्रीराम जैसा जीवन जीने का रहस्य
 
1. दया धर्म का मूल है: 'दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्रान।।'
- दया ही सभी धर्मों का आधार है, जबकि अभिमान सभी पापों की जड़ है। मनुष्य को जब तक जीवन है, दया नहीं छोड़नी चाहिए।
 
2. मीठे वचन का महत्व: 'तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर। बसिकरण इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर।।'
- मीठे वचन बोलने से चारों ओर सुख का वातावरण बनता है। यह किसी को भी वश में करने का मंत्र है, इसलिए हमेशा कठोर वचनों का त्याग कर मीठा बोलना चाहिए।
 
3. कर्म की प्रधानता: 'कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा।।'
- यह संसार कर्म प्रधान है। जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।
 
4. क्रोध पर नियंत्रण: क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यह व्यक्ति के विवेक को नष्ट कर देता है और जीवन को बर्बाद कर सकता है।
 
5. तृष्णा से मुक्ति: जिस व्यक्ति की इच्छाएं/ तृष्णा जितनी अधिक होती है, वह उतना ही बड़ा दरिद्र होता है। संतोष ही सबसे बड़ा धन है।
 
6. परोपकार का स्वभाव: जैसे फल आने पर वृक्ष झुक जाते हैं और वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, वैसे ही संपत्ति होने पर सज्जन नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है।
 
7. 'भय बिनु होइ न प्रीति”: बिना डर के प्रेम नहीं होता।
 
8. 'पर उपकार से बढ़ कर कोई धर्म नहीं”: दूसरों की भलाई सबसे बड़ा धर्म है।
 
9. 'समरथ को नहीं दोष गोसाईं”: समर्थ व्यक्ति को कोई दोष नहीं देता।
 
10. 'संत समाज भगति करि लाहा:” संतों की संगति से ही सच्ची भक्ति मिलती है।
 
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