Jammu Kashmir election 2024 : विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही कश्मीर में सुरक्षा की चिंता सताने लगी है क्योंकि पाक परस्त आतंकवाद ने एक बार फिर से फन उठा लिया है। इस बार आतंकी कहर जम्मू संभाग पर बरप रहा है। चुनाव आयोग ने भी इसके प्रति चिंता जताते हुए कहा है कि प्रत्येक उम्मीदवार को सुरक्षा प्रदान की जाएगी पर अभी तक का इतिहास यही बताता है कि जम्मू कश्मीर में राजनीतिज्ञ हमेशा ही आतंकियों के लिए साफ्ट टारगेट रहे हैं।
सुरक्षाबलों और प्रदेश सरकार के दावों के बावजूद इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि जम्मू कश्मीर में फैले आतंकवाद में राजनीतिज्ञ आतंकियों का सॉफ्ट टारगेट रहे हैं।
कश्मीर में होने वाले हर किस्म के चुनावों में आतंकियों ने राजनीतिज्ञों को ही निशाना बनाया है। उन्होंने न ही पार्टी विशेष को लेकर कोई भेदभाव किया है और न ही उन राजनीतिज्ञों को ही बख्शा जिनकी पार्टी के नेता अलगाववादी सोच रखते हों।
यह इसी से स्पष्ट होता है कि पिछले 37 सालों के आतंकवाद के दौर के दौरान सरकारी तौर पर आतंकियों ने 1271 के करीब राजनीति से सीधे जुड़े हुए नेताओें को मौत के घाट उतारा है। इनमें ब्लाक स्तर से लेकर मंत्री और विधायक स्तर तक के नेता शामिल रहे हैं। हालांकि वे मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पाए लेकिन ऐसी बहुतेरी कोशिशें उनके द्वारा जरूर की गई हैं।
राज्य में विधानसभा चुनावों के दौरान सबसे ज्यादा राजनीतिज्ञों को निशाना बनाया गया है। इसे आंकड़े भी स्पष्ट करते हैं। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में अगर आतंकी 75 से अधिक राजनीतिज्ञों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारने में कामयाब रहे थे तो वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव उससे अधिक खूनी साबित हुए थे जब 87 राजनीतिज्ञ मारे गए थे।
ऐसा भी नहीं था कि बीच के वर्षों में आतंकी खामोश रहे हों बल्कि जब भी उन्हें मौका मिलता वे लोगों में दहशत फैलाने के इरादों से राजनीतिज्ञों को जरूर निशाना बनाते रहे थे। अगर वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2005 तक के आंकड़ें लें तो 1989 और 1993 में आतंकियों ने किसी भी राजनीतिज्ञ की हत्या नहीं की और बाकी के वर्षों में यह आंकड़ा 8 से लेकर 87 तक गया है। इस प्रकार इन सालों में आतंकियों ने कुल 1271 राजनीतिज्ञों को मौत के घाट उतार दिया।
अगर वर्ष 2008 का रिकार्ड देंखें तो आतंकियों ने 16 के करीब कोशिशें राजनीतिज्ञों को निशाना बनाने की अंजाम दी थीं। इनमें से वे कईयों में कामयाब भी रहे थे। चौंकाने वाली बात वर्ष 2008 की इन कोशिशों की यह थी कि यह लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में रहते हुए अंजाम दी गईं थी जिस कारण जनता में जो दहशत फैली वह अभी तक कायम है।
अब जबकि प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है, आतंकी भी अपनी मांद से बाहर निकलते जा रहे हैं। उन्हें सीमा पार से दहशत मचाने के निर्देश दिए जा रहे हैं। वे अपनी कोशिशों की शुरूआत भी कर चुके हैं। हालांकि बड़े स्तर के नेताओं को तो जबरदस्त सिक्यूरिटी दी गई है पर निचले और मंझौले स्तर के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बाहर निकलने में खतरा महसूस हो रहा है। ऐसे नेताओं को एक से दो व्यक्तिगत सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है जो आतंक के स्तर के आगे ऊंट के मुंह में जीरे के समान कही जा सकती है।