कान्हा की मैनेजमेंट थ्योरी

श्रीकृष्ण यानी बुद्धिमत्ता, चातुर्य, युद्धनीति, आकर्षण, प्रेमभाव, गुरुत्व, सुख, दुख और न जाने और क्या? एक भक्त के लिए श्रीकृष्ण भगवान तो हैं ही, साथ में वे जीवन जीने की कला भी सिखाते है। आज के इस कलयुग के लिए गीता के वचन क्या कहते हैं? क्या छल-कपट से बिजनेस करने वाले और रोजाना की जिंदगी में तेज गति से आगे बढ़ने की चाह रखने वाले युवा साथियों के लिए श्रीकृष्ण के मायने क्या हैं? क्या श्रीकृष्ण केवल भगवान हैं? क्या श्रीकृष्ण केवल अवतार थे?

दरअसल, श्रीकृष्ण में वह सब कुछ है जो मानव में है और मानव में नहीं भी है! वे संपूर्ण हैं, तेजोमय हैं, ब्रह्म हैं, ज्ञान हैं। इसी अमर ज्ञान की बदौलत आज भी हम श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों और गीता के आधार पर कारपोरेट सेक्टर में मैनेजमेंट के सिद्धांतों को गीता से जोड़ रहे है। श्रीकृष्ण ने धर्म आधारित कई ऐसे नियमों को प्रतिपादित किया, जो कलयुग में भी लागू होते हैं।

छल और कपट से भरे इस युग में धर्म के अनुसार किस प्रकार आचरण करना चाहिए। किस प्रकार के व्यवहार से हम दूसरों को नुकसान न पहुंचाते हुए अपना फायदा देखें!

जन्माष्टमी के अवसर पर हमने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से कुछ ऐसे सूत्र निकालने की कोशिश की है जो आज भी कारपोरेट कल्चर में अपनाए जाते हैं। इन्हें अपनाए जाने से न केवल कंपनी का भला होगा, बल्कि समाज को भी इससे फायदा होगा। निश्चित रूप से ये मैनेजमेंट के सूत्र आज से कई सौ वर्ष पहले के हैं पर आज भी सामयिक हैं।

श्रेष्ठ प्रबंध
अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए दो विकल्पों में से श्रेष्ठ मैनेजर भगवान श्रीकृष्ण को चुना। दरअसल, किसी भी कंपनी में अगर मैनेजर श्रेष्ठ हो, तब वह किसी भी प्रकार के कर्मचारियों से काम करवा सकता है। इसके उलट अगर कंपनी के पास केवल श्रेष्ठ कर्मचारी हैं और उन्हें देखने वाला कोई नहीं है, तब जरूर मुश्किल आ सकती है। सभी कर्मचारी अपनी बुद्धि के अनुसार काम करेंगे पर उन्हें दिशा देने वाला कोई नहीं होगा। ऐसे में कंपनी किस ओर जाएगी, यह कह नहीं सकते।

नैतिक मूल्य व प्रोत्साह
गीता में कहा गया है कि युद्ध नैतिक मूल्यों के लिए भी लड़ा जाता है। कौरव व पांडव के बीच युद्ध के दौरान अर्जुन को कौरवों के रूप में अपने ही लोग नजर आते हैं। ऐसे में वह धनुष उठाने से मनाकर देता है। ठीक इसी तरह आज के प्रबंधकों को असंभव लक्ष्य पूरा करने के लिए दिए जाते है। ऐसे में कृष्ण जैसे प्रोत्साहनकर्ता की जरूरत जान पड़ती है।

अहंकार न करे
गीता में कहा गया है कि अहंकार के कारण नुकसान होता है। कई बार प्रबंधक लगातार सफलता प्राप्त करने के बाद अपनी ही पीठ ठोंकता रहता है। वह यह समझने लगता है कि अब सफलता उसके बाएं हाथ का खेल है। इसके बाद जब उसे असफलता मिलती है, जिसके कारण क्रोध व अन्य विकारों का जन्म होता है। फिर व्यक्ति अपनी आकांक्षाएं पूरी न होने की स्थिति में तुलना करना आरंभ कर देता है। उसे जो कार्य दिया रहता है, उसमें मन नहीं लगता और वह भटक जाता है। इस कारण अहंकार से दूर रहोगे, तब ही सभी तरह की सफलताएँ पचा भी पाओगे!

भीतरी व बाहरी सौन्दर्
महाभारत के युद्ध के दौरान जब अर्जुन के मन में कृष्ण के प्रति यह प्रश्न उठता है कि आखिर प्रभु आप क्या हो? इस प्रश्न पर कृष्ण अपना दिव्य स्वरूप प्रकट करते है। कृष्ण के विराट स्वरूप को देखने के बाद यह कह सकते है कि एक मैनेजर को अपना स्वरूप कैसा रखना चाहिए।

दरअसल, कृष्ण ने संपूर्ण सौंदर्य के बारे में कहा है कि मन की शुद्धता के साथ ही तन का वैभव भी नजर आना चाहिए। ठीक इसी तरह एक मैनेजर को भी अपने लुक्स की तरफ ध्यान देना चाहिए। उसका सौन्दर्य केवल बाहरी नहीं हो, बल्कि भीतरी भी होना चाहिए।

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