हमें अपने धर्म के पथ से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति ही क्यों न आ जाए। जो अपने धर्म के पथ पर चलता है सफलता उसके कदम चूमती है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म के पथ पर चलने की ओर मार्गदर्शन दिया।
भीषण भव-रण मध्य एक तृण-मात्र हूं मैं अति साधारण। लीजे अपनी चरण-शरण, हे अधम-उधारण बिनु कारण॥
माया-आकर्षण से कीजे, रक्षण कृष्ण तरण-तारण। क्षम-मम-दूषण, त्रिभुवन-भूषण, दीनबंधु, प्रभु दुख-हारण॥
होय निवारण, मोह-आवरण, ज्ञान-जागरण हो तत्क्षण। करूं स्मरण, दर्शन प्रतिक्षण, कण-कण बन जाए दर्पण॥
दैन्य हरण कर प्रेम संचरण, कर दूं मैं मैं-पन अर्पण। पाप क्षरण कर, जन्म-मरण हर, पूर्ण करो प्रभु अपना प्रण॥
टेर श्रवण कर, मुझे ग्रहण कर, नर बन जाए नारायण। परम विलक्षण और असाधारण गति पा जाए यह तृण॥