श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : कैसे मनाएं शुभ पर्व,जानिए उत्तम समय और पंजीरी के फायदे

आचार्य राजेश कुमार
कैसे करें सरल पूजन/ अत्यधिक बीमारियों का समय चातुर्मास, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इन बीमारियों से बचने व निरोग रहने के वैज्ञानिक व अचूक उपाय!
 
भगवान विष्णु के 8वें अवतार वसुदेव श्रीकृष्ण, द्वारिकाधीश, कन्हैया इत्यादि नामों से जाने जाने वाले के जन्म को पूरी दुनिया 'श्रीकृष्ण जन्माष्टमी' के रूप में मनाती है। पुराने समय में प्रत्येक वर्ष भादो मास आते ही घर-घर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन की तैयारियां बड़े हर्षोल्लास से प्रारंभ हो जाती थीं। बाजार विभिन्न प्रकार के मिठाइयों व खिलौनों इत्यादि से सज जाते थे। ऐसा लगता था कि मानो हमारे घरों में ही कान्हा ने जन्म लिया हो।
 
मंदिरों के अलावा बहुत से घरों में भी कन्हैया की छठी और बरही भी मनाई जाती थी। जमाना बदला और लोग धीरे-धीरे पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हुए इस त्योहार में केवल खानापूर्ति करने लगे। यद्यपि आज भी मंदिरों व महाराष्ट्र की हांडी प्रतियोगिता के अलावा बहुत से पुराने लोग अभी भी वैसे ही जन्माष्टमी मनाते हैं, जैसे पहले मनाते थे।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और नियम:-
 
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृषभ राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था। इसलिए श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।
 
अष्टमी तिथि 11 अगस्त 2020, मंगलवार सुबह 9.06 बजे से लेकर 12 अगस्त, बुधवार की सुबह 11.15 बजे तक रहेगी, वहीं इन दोनों तिथियों में नक्षत्र का संयोग नहीं मिल रहा है। रोहिणी नक्षत्र 13 अगस्त, गुरुवार को भोर से 3.26 से मिल रहा है। कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अष्टमी तिथि को ही मनाया जाता है। इस वजह से पर्व 11 अगस्त, मंगलवार को स्मार्त मान्यता वाले जन्माष्टमी पर्व मना सकेंगे।
 
वहीं वैष्णव यानी साधु-संन्यासी, वैष्णव भक्त या वैष्णव गुरु से दीक्षा लेने वाले शिष्य 12 अगस्त 2020, बुधवार को जन्माष्टमी पर्व मना सकेंगे। वैष्णव उदया तिथि मानते हैं। इस वजह से 2 दिन पर्व का संयोग बन रहा है। इससे 2 दिनों तक पर्व की धूम रहेगी।
 
भगवान वासुदेव के पूजन का सरल तरीका
 
कृष्णजी या लड्डूगोपाल की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराएं, फिर दूध, दही, घी, शकर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं, फिर सुन्दर वस्त्र पहनाएं। रात्रि 12 बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती उतारें। उसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करें। व्रती दूसरे दिन नवमी में व्रत का पारण करें।
 
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को 'व्रतराज' कहा जाता है। मान्यता है कि इस 1 दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
 
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।
 
इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो, वे आज विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं।
 
अत्यधिक बीमारियों का समय चातुर्मास, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिनों में ही इन बीमारियों (Corona) से बचने के निरोग रहने के वैज्ञानिक व अचूक उपाय:-
 
आप सभी प्रत्येक वर्ष माह जुलाई से नवंबर के मध्य होने वाली बड़ी-छोटी साध्य-असाध्य सभी बीमारियों (विभिन्न प्रकार के बुखार, इंसेफलाइटिस, फ्लू, चर्म रोग, खांसी, श्वास रोग और सबसे बड़ा रोग कोरोना इत्यादि) से अच्छी तरह परिचित हैं। इन दिनों घरों में खुले में रखे खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण वातावरण में तेजी से बढ़ते खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया हैं।
 
मित्रो, मैं आपको लेकर इतिहास की तरफ जाना चाहता हूं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व भी इन दिनों में ऐसी ही बीमारियां होती थीं तब आज की तरह विज्ञान ने इतना विकास नहीं किया था। इसके बावजूद लोग पेड़-पौधों व जड़ी-बूटियों के माध्यम से अपनी रक्षा स्वयं कर लेते थे और आज से अधिक जीवित रहते थे।
 
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आपके रसोईघर (किचन) में इस्तेमाल होने वाले मसालों में इन बीमारियों से लड़ने व इन बीमारियों को खत्म करने का अचूक उपाय है। उन्हीं मसालों में सूखी धनिया व तेजपत्ता पावडर को भाद्रपद के कृष्ण पक्ष, अष्टमी के रोहिणी नक्षत्र में इन पावडर को भूनकर चीनी मिलाकर पंजीरी बनाकर जन्माष्टमी के प्रसाद के रूप में खाने से ये बीमारियां रफूचक्कर हो जाती थीं। किंतु धीरे-धीरे बदलते समय के साथ-साथ लोग इस अचूक उपाय को भूलते चले गए। आज भी भारतवर्ष के कई प्रांतों में इस प्रसाद को ग्रहण करने की परंपरा यथावत बनी हुई है।
 
अत: आप सभी से निवेदन है कि आप अपने पूरे परिवार के सुरक्षा कवच हेतु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को रात्रि में अपने घर में भगवान के जन्म समय पर सूखी धनिया व तेजपत्ता के पावडर की पंजीरी बनाकर प्रसादस्वरूप ग्रहण करें तथा प्रत्येक दिन सुबह ब्रश करने के पश्चात 2 चम्मच जरूर ग्रहण करें। इससे चातुर्मास में होने वाली खतरनाक बीमारियों से कोसों दूर रहेंगे।
 
-आचार्य राजेश कुमार (www.divyanshjyotish.com)

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