Karnataka Assembly Election Result 2023 : कर्नाटक में BJP की ये गलतियां 3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में पड़ सकती हैं भारी

Webdunia
शनिवार, 13 मई 2023 (21:46 IST)
नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव (karnataka assembly election) में कांग्रेस (Congress) की शानदार जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) को केंद्रीय नेताओं से इतर मजबूत क्षेत्रीय नेताओं को बड़ी भूमिका देने पर विचार करना पड़ सकता है। तीन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है। भाजपा को कर्नाटक में की गई गलतियों से सबक लेना होगा।
 
पार्टी सूत्रों का कहना है कि राज्यों में मजबूत नेतृत्व प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला करने में सहायक होता है, खासकर विपक्षी दलों के पास भी मजबूत क्षेत्रीय नेता होने की स्थिति में। उन्होंने स्वीकार किया कि कर्नाटक में यह स्पष्ट रूप से गायब था।
 
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में कांग्रेस के हाथों मिली हार ने केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी को स्थानीय नेताओं को मजबूत भूमिका में लाने की दिशा में सोचने की ओर अग्रसर किया है। कारण, दोनों प्रतिद्वंद्वियों को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस साल 3 और राज्यों के चुनावों में सीधी टक्कर का सामना करना है।
कांग्रेस के लिए संजीवनी : 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद यह पहली बार है जब कांग्रेस ने अपने सिकुड़ते जनाधार के बीच एक बड़े राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा को हराया है। यह एक ऐसी उपलब्धि कही जा सकती है जो उसके पस्त कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करेगी और संभवतः आने वाले महीनों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा का मुकाबला करने के लिए जोश भरेगी।
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भाजपा ने कर्नाटक के पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को केंद्र में रखा और राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दी जबकि कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर चुनाव को केंद्रित किया, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के खिलाफ जनता के बीच ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ का विमर्श खड़ा किया और सिद्धरमैया तथा प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के इर्दगिर्द चुनावी प्रचार को आगे बढ़ाया।
 
कर्नाटक के नतीजों में मजबूत स्थानीय नेताओं के महत्व को रेखांकित किए जाने के बीच भाजपा सूत्रों ने कहा कि पार्टी को भी इस पर विचार करना पड़ सकता है और क्षेत्रीय नेताओं को बड़ी भूमिका देने पर विमर्श करना पड़ सकता है।
 
पार्टी के एक नेता ने 2022 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की महत्वपूर्ण जीत की ओर इशारा किया और कहा कि यह इसलिए संभव हो पाया कि वहां उसके पास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे एक मजबूत क्षेत्रीय नेता थे।
 
पार्टी सूत्रों ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा के वोट प्रतिशत में अंतर इस बात का स्पष्ट संकेत है कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यापक स्वीकृति राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में समान रूप से काम नहीं करती है।
 
नतीजे बता रहे हैं कि ‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले इस प्रदेश में न तो प्रधानमंत्री मोदी का निजी करिश्मा और ना ही उनकी जीतोड़ मेहनत काम आई। भाजपा का ‘डबल इंजन’ सरकार का नारा नए चेहरों पर भरोसे की उसकी ‘पीढ़ीगत बदलाव’ की रणनीति भी कोई असर नहीं दिखा सकी और सोशल इंजीनियरिंग का उसका फार्मूला भी बेरंग ही नजर आया।
 
भाजपा ने इस बार के चुनाव में परंपरा तोड़ने के लिए पूरा दमखम लगा दिया था। सबसे पहले उसने सत्ता विरोधी लहर को पाटने के लिए 2 दर्जन के करीब मौजूदा विधायकों के टिकट काटे और 5 दर्जन से अधिक नए चेहरों को मौका दिया। इस क्रम में भाजपा ने जगदीश शेट्टार और लक्ष्मी साउदी जैसे वरिष्ठ नेताओं तक को नजरअंदाज किया। पार्टी ने अपनी इस रणनीति को कर्नाटक भाजपा में ‘पीढ़ीगत बदलाव’ करार दिया था।
 
भाजपा ने सामाजिक समीकरण को साधने के लिए लिंगायत के साथ-साथ वोक्कालिगा समुदाय और पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में टिकट दिया। हालांकि उसका यह फार्मूला भी कारगर नहीं रहा।
 
चुनाव परिणामों के मुताबिक कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। 1989 के विधानसभा चुनाव के बाद यह कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत हो सकती है। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 40, 2008 में 110, 2004 में 79, 1999 में 44 और 1994 में 40 सीटें मिली थी।
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यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि पिछले 38 सालों में कभी भी कोई सत्ताधारी दल चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी नहीं कर सका है। यह दस्तूर इस बार के चुनाव में भी कायम रहा। साल 2018 में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और वरिष्ठ नेता बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनी। इस चुनाव में कांग्रेस 80 सीटें और जद (एस) 37 सीटें जीतकर क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थी।
 
हालांकि, विश्वास मत से पहले तीन दिनों के भीतर ही उनकी सरकार गिर गई। क्योंकि येदियुरप्पा आवश्यक संख्या बल नहीं जुटा सके थे। इसके बाद, कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन ने सरकार बनाई और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। लेकिन 14 महीनों के भीतर ही यह सरकार भी गिर गई। क्योंकि 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और वे सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर आ गए। बाद में सभी भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी की सत्ता में वापसी में मदद की।
 
कांग्रेस के ‘40 फीसदी कमीशन सरकार’ के आरोपों की काट निकालने के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मोर्चा संभाला और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक पुराने बयान का हवाला देकर कांग्रेस पर 85 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार का आरोप मढ़ा।
 
प्रधानमंत्री ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार में उतरने से पहले राज्य भर के पार्टी कार्यकर्ताओं से डिजिटल माध्यम से संवाद किया था। इसके बाद उन्होंने 18 जनसभाओं को संबोधित किया और बेंगलुरु सहित 6 स्थानों पर रोड शो भी किए।
 
कांग्रेस द्वारा अपने चुनावी घोषणा-पत्र में बजरंग दल को प्रतिबंधित करने के वादे को भी भाजपा ने भुनाने की भरपूर कोशिश की। भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी, दोनों ने ही इस मुद्दे का इस्तेमाल कांग्रेस पर भगवान आंजनेय और हिन्दुओं की भावनाओं के खिलाफ होने का आरोप लगाने के लिए किया। उन्होंने प्रचार अभियान के दौरान बार-बार ‘जय बजरंगबली’ का उद्घोष भी किया। नतीजे बताते हैं कि यह कोशिश भी नाकाम साबित हुई।
 
संतोष के लिए महत्यपूर्ण था चुनाव : कर्नाटक का चुनाव भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष के लिए महत्वपूर्ण था। पार्टी के अध्यक्ष के बाद भाजपा में संगठन महामंत्री का पद सबसे महत्वपूर्ण होता है। टिकट बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन से लेकर प्रचार अभियान को धार देने और संगठन स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश भरने में संतोष की भूमिका महत्वपूर्ण थी। वे खुद कर्नाटक से ताल्लुक भी रखते हैं। इससे पहले, भाजपा को अपने अध्यक्ष जेपी नड्डा के गृह प्रदेश हिमाचल में हार का सामना करना पड़ा था। भाषा Edited By : Sudhir Sharma

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