करवा चौथ की रात्रि ऐसी रात होती है, जब चंद्रोदय की प्रतीक्षा बहुत रहती है, परंतु चंद्रदेव अपेक्षा से ज्यादा देर से उदय होते हैं। प्रत्येक व्रती महिला चंद्रोदय का बेसब्री से इंतजार करती है। इस व्रत में यह भी भावना रहती है कि बाल चंद्रमा के दर्शन से अगले जन्म में भी सुखमय दांपत्य जीवन की प्राप्ति होती है।
चंद्रमा के उदय के बाद चंद्रमा का प्रतिबिंब एक जल की थाली में देखा जाता हैं। कई स्थानों पर छलनी के माध्यम से भी चंद्रदर्शन किए जाते हैं। चंद्रमा की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। व्रत की कथाएं सुनाई जाती हैं, पति के चरण स्पर्श किए जाते हैं।
पहले जहां 'सरगी' और 'बाया' एक परंपरा के रूप में लिया जाता था, वहीं अब इसमें फैशन का पुट भी शामिल हो गया है। इसमें साधारण कपड़ों की जगह डिजाइनर कपड़े दिए जाने लगे हैं। परंपरा से अलग हटकर ही सही लेकिन आज भी त्योहारों का महत्व कम नहीं हुआ है।