यह भित्ति चित्रण लोककला का पर्व है, जो कई जगहों पर मनाया जाता है। यह पर्व निमाड़-मालवा के साथ राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, बुन्देलखंड तथा अन्य कई स्थानों पर वहां की परंपरानुसार मनाया जाता है।
दरअसल सांझी 'संध्या' शब्द से बना है। जो 'सांझ' से अपभ्रंश होकर 'सांझी' बना। वैसे तो तुमने इन दिनों संध्या के समय अपने आस-पड़ोस में देखा होगा कि कई छोटी-बड़ी कन्याएं घर की दीवार पर पीली मिट्टी और गोबर से कुछ आकृतियां बनाती हैं, उसका श्रृंगार करती हैं तथा फूल-पत्तियां आदि से उनकी सजावट करती हैं। फिर उसकी पूजा-आरती करके प्रसाद भी बांटती हैं और भजन व लोकगीत गाती हैं, यही सांझी है।
ऐसा माना जाता है कि जो भी कन्या पितृ पक्ष के दिनों में सच्चे मन से 'सांझी' की पूजा करती है, उसे बहुत ही संपन्न और सुखी ससुराल मिलता है। यह प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या यानी 16 दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है, जो पितृ पक्ष समाप्त होते ही नवरात्रि के प्रथम दिन सांझी को दीवारों से उतार कर नदी में बहा दिया जाता है।