चिट्ठी आई है...

समझ नहीं आ रहा था कि इस बार छुट्टियों में क्या किया जाए कि तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले गोलू ने एक चिट्ठी लाकर मुझे दी। चिट्ठी बड़ौदा से मेरी चचेरी बहन की थी।

मैंने देखा कि उसने चिट्ठी में बड़ौदा की बहुत सारी बातें लिखी हैं और यह भी बताया कि इन दिनों वह एक डांस क्लास में जा रही है। मुझे खयाल आया कि गर्मियों की धूप में दिनभर यहाँ-वहाँ भटकने से तो घर में बैठकर क्यूँ न अपने दोस्तो और रिश्तेदारों को चिट्ठी भेजी जाए।

इससे अपना समय भी कट जाएगा और उनसे बातचीत भी हो जाएगी। अब कोई चिट्ठी लिखता भी नहीं है तो चिट्ठी में बहुत-सी बातें लिखना और भी मजेदार हो जाएगा। फोन पर तो बहुत कम बातें होती हैं और जल्दी-जल्दी बात करने में कई बातें छूट भी जाती हैं इसलिए मैंने सोचा कि चिट्ठी लिखना ठीक रहेगा।

मैंने कुछ चिट्ठियाँ भेजी और कुछ ही दिनों में दिल्ली में रहने वाली मेरी मौसी के बेटे चिराग ने मुझे एक बड़ा सा लेटर लिखा। चिराग इस समय थर्ड क्लास में गया है और उसने अपनी तरह से चिट्ठी लिखी। उसने लिखा दीदी आप दिल्ली आओ, यहाँ खूब गरमी है। खूब घूमेंगे और पानीपुरी खाएँगे। पढ़कर खूब अच्छा लगा। चिट्ठी लिखना छुट्टियों का एक अच्छा काम हो सकता है। बिल्कुल डायरी लिखने जैसा।
- ज्योति जोशी, भोपा

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