बचपन की यादों को सहजेती कविता : छूट गए सब...
जो छोड़ा उसे पाने का मन है,
जो पाया है उसे भूल जाने का मन है।
छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है,
खर्चा बहुत सारा जोड़ा बहुत कम है।
छोड़ा बहुत पीछे वो प्यारा छोटा-सा घर,
छोड़ा मां-बाबूजी के प्यारे सपनों का शहर।
छोड़े वो हमदम वो गली वो मोहल्ले,
छोड़े वो दोस्तों के संग दंगे वो हल्ले।
छोड़े सभी पड़ोस के वो प्यारे-से रिश्ते,
छुट गए प्यारे से वो सारे फरिश्ते।
छूटी वो प्यार वाली मीठी-सी होली,
छूटी वो रामलीला छूटी वो डोल ग्यारस की टोली।
छूटा वो रामघाट वो डंडा वो गिल्ली,
छूटे वो 'राजू' वो 'दम्मू' वो 'दुल्ली'।
छूटी वो मां के हाथ की आंगन की रोटी,
छूटी वो बहनों की प्यारभरी चिकोटी।
छूट गई नदिया छूटे हरे-भरे खेत,
जिंदगी फिसल रही जैसे मुट्ठी से रेत।
छूट गया बचपन उस प्यारे शहर में,
यादें शेष रह गईं सपनों के घर में।