नव गीत : फिर सजा मौसम सुहाना

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
पेड़ पत्ते डालियों का
मुस्कराना गुनगुनाना
रूप धर बहुरूपिया का
फिर सजा मौसम सुहाना।
 
खेल में अठखेलियों की
धुंध अमराई बनी
बादलों में इंद्रधनुषी
आंख की भौंहें तनी
आम के या नीम के
या पेड़ इमली के तले
दिख रहे हैं दूर से ही
मखमली झूले डले
विघ्न पैदा कर रहा है
बादलों का फनफनाना।
 
तरुणियों पर वार होते
प्रेम की आखेट में
काम बाणों की झड़ी
अंगड़ाइयों की ओट में
दूर पर्वत पर फुहारों की
कतारें नाचती सीं
चोटियों के प्रेम पत्रों की
लिखावट बांचतीं सीं
बादलों की बाहुओं में
बिजलियों का कसमसाना।
 
मनचलों की राजभाषा में
हवाएं बोलती हैं
दिल लगाने का ठिकाना
खोज करती डोलती हैं
ताल सरिता निर्झरों के
वस्त्र गीले तर बतर हैं
कर रहे किल्लोल मस्ती
ये वरुण के नाचघर हैं
है सतत जारी धरा का
सांस लेना मुस्कराना।

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