कौवे के रंग के बारे में एक पुरानी किवदंती है। एक ऋषि ने कौए को अमृत खोजने भेजा, लेकिन उन्होंने यह इत्तला भी दी कि सिर्फ अमृत की जानकारी ही लेना है, उसे पीना नहीं है।
इस पर ऋषि आवेश में आ गए और श्राप दिया कि तुमने मेरे वचन को भंग कर अपवित्र चोंच द्वारा पवित्र अमृत को भ्रष्ट किया है। इसलिए प्राणी मात्र में तुम्हें घृणास्पद पक्षी माना जाएगा एवं अशुभ पक्षी की तरह मानव जाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी, लेकिन चूंकि तुमने अमृत पान किया है, इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु कभी नहीं होगी। कोई बीमारी भी नहीं होगी एवं वृद्धावस्था भी नहीं आएगी।