शिक्षाप्रद कहानी : बापू का राष्ट्रहित

मंगलवार, 30 सितम्बर 2014 (12:07 IST)
महात्मा गांधी (बापू) ने सारे भारत का जीवन बनाया और अपने जीवन का अधिक भाग जेल के भीतर बिता दिया। बात तब की है, जब बापू पहरे के अधीन थे, संगीनों के साए में, मनुबेन भी साथ थीं। मनुबेन ने जेल अधीक्षक से एक नोटबुक मंगवाई। 
 
बापू ने नोटबुक देखी तो पूछा- 'यह नोटबुक कितनी कीमत की आई?'
 

मनुबेन ने जेल अधीक्षक से पूछकर कहा- एक रुपए और एक आने की है बापू।

यह सुनते ही बापू ने कहा- 'हमारे पास बहुत-सा कागज है, उसी से काम चला लेती। नोटबुक किसलिए ली? तुम समझती हो कि अपने पास से पैसे नहीं देने पड़ते, अंगरेज सरकार देती है? यह भारी भूल है। यह तो हमारे ही पैसे हैं।'

नोटबुक वापस लौटा दी गई।

फिर बापू ने अपने ही हाथों से- फालतू पड़े खाली कागजों से एक डायरी तैयार की, उसे सलीके से सीकर उस पर जिल्द भी चढ़ा दी। नोटबुक के रूप में यह डायरी मनुबेन को बहुत पसंद आई। 

यह सच है, बापू एक-एक पल देश के पैसे का ख्याल रखते थे तथा पैसे को व्यर्थ खर्च नहीं करते थे, बल्कि इस तरह एकत्रित पैसे को वे राष्ट्रहित में लगाते थे।
 

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