गर्भाशय में निषेचित अंडे के स्थापित होने के बाद उसके लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने वाले जीन की पहचान कर ली गई है।
टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तोरू मियाजाकी की अगुवाई में वैज्ञानिकों के दल ने चूहे पर परीक्षण के आधार पर इस जीन की पहचान की है।
मियाजाकी के अनुसार यह जीन गर्भधारण के प्रारंभिक चरणों में संभवत: महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यदि यह जीन अपना काम नहीं करे तो निषेचित अंडे का विकास नहीं हो पाएगा।
उन्होंने कहा कि चूँकि मानव जाति में भी इसी तरह का जीन होता है और उनकी गर्भाधारण प्रक्रिया भी करीब करीब चूहे की भांति ही होती है ऐसे में इस दल की यह पता लगाने के लिए रक्त नमूने लेने की योजना है कि प्रजनन संबंधी इलाज करवाने वाली महिलाओं को इस जीन में कहीं कोई दिक्कत तो नहीं है।
इसके लिए यह दल तोक्यो विश्वविद्यालय के मेडिकल स्कूल की आचरण समिति से अनुमति लेगा।
मियाजाकी ने कहा कि फिलहाल बांझपन के इलाज के दौरान सिर्फ शुक्राणु, अंडाणु और अंडोत्सर्ग पर ध्यान दिया जाता है। लेकिन निषेचित अंडाणु के बाद की गर्भाशय की स्थितियों पर विचार करना महत्वपूर्ण है। (भाषा)