Miyake Event: 14375 साल के बाद धरती पर आने वाली है महाप्रलय, जानिए कब और कहां होगी तबाही?

WD Feature Desk

शुक्रवार, 30 मई 2025 (16:07 IST)
Solar storm 2025: पिछले 12 दिनों से सूरज की ज्वालाएं लगातार भड़क रही है। ऐसा अक्सर 11 से 12 साल में होता है परंतु इस बार यह ज्वालाएं कुछ ज्यादा ही भड़कर रही है और जब इन ज्वालाओं का गुब्बार अंतरिक्ष में सफर करते हुए धरती पर आ पहुंचता है तो इससे होने वाली तबाही का सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं। सौर तूफान सूर्य से निकलने वाले प्लाज्मा होते हैं। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार इस साल 2 सौर तूफान आ सकते हैं जो सूर्य से निकलकर पृथ्वी के करीब पहुंच सकते हैं। वह भी ऐसे शक्तिशाली तूफान जिसके कारण धरती पर महाप्रलय हो सकती है। 
 
14 मई, 2025 को AR-4087 सनस्पॉट से X2.7 परिमाण की सबसे बड़ी ज्वाला निकली। वैज्ञानिकों को नहीं पता कि ये सनस्पॉट और तूफान रुकेंगे या और अधिक खतरनाक हो जाएंगे। AR-4087 सूर्य की सतह पर एक नया सनस्पॉट है, जिसने M7.7 और M4.7 जैसी ज्वालाएं भी उत्पन्न की हैं। इसका बीटा-गामा-डेल्टा चुंबकीय क्षेत्र इसे अस्थिर और खतरनाक बनाता जा रहा है और सबसे चिंता की बात यह है कि यह उठकर अब धरती की ओर बढ़ रहा है। वैसे प्रत्येक 11 वर्ष में सूर्य एक सौर चक्र से गुजरता है, जिसमें सनस्पॉट और फ्लेयर्स की संख्या बढ़ती जाती है। वर्तमान में 25वां सौर चक्र चल रहा है, जो सौर अधिकतम की अवधि में है। 
 
दरअसल, फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने पेड़ों के जीवाश्म छल्लों का अध्ययन कर पता लगाया है कि 12,350 ईसा पूर्व यानि 14375 साल पहले आए एक सौर तूफान की वजह से धरती का एक हिस्सा तबाह हो गया था। इस सौर तूफान के दौरान कार्बन-14 में तेज बढ़ोतरी फ्रांस की Drouzet नदी के किनारे पाए गए Scots Pine पेड़ों में दर्ज मिली, और इसकी पुष्टि ग्रीनलैंड की बर्फ की परतों में मिले बेरीलियम-10 के समान स्तरों से हुई, जो यह साबित करता है कि इस तूफान का प्रभाव दुनियाभर में फैला हुआ था। पेड़ों के पुराने छल्लों में रेडियोकार्बन की असामान्य वृद्धि से यह पता लगा है। ये तूफान इतना शक्तिशाली था कि उसने 2003 के हेलोवीन सौर तूफान से 500 गुणा ज्यादा ऊर्जा धरती पर भेजी थी। हालांकि फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने बताया है कि जल्द ही ऐसा तूफान आने वाला है जो धरती के कई देशों को न केवल अंधेरे में डूबो देगा बल्की सबकुछ तबाह कर देगा। इस घटना को कहते हैं मियाके इवेंट। 
 
कब आएगा सौर तूफान: हालांकि यह कब तक आएंगे इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है, लेकिन यह तय है यदि अनुमान सटीक रहा तो इस साल के अंत तक यह तूफान निश्चित आ सकता है। वैज्ञानिकों ने पहले 2025 में सौर तूफान के चरम पर होने की भविष्यवाणी की थी। अब माना जा रहा है कि यह इसी साल के आखिर तक आ सकता है। हमारी धरती से सूर्य का बाहरी हिस्सा ही इतना दूर है, कि हम तक उसकी किरणें पहुंचने में 8 मिनट का समय लगता है लेकिन सौर तूफान के पहुंचन में कितना समय लगेगा इसका आकलन नहीं कर सकते। 
 
क्या होगा इस तूफान से: लंदन यूनिवर्सिटी में सौर भौतिक विज्ञानी एलेक्स जेम्स का कहना है कि सूर्य से पृथ्वी की ओर निकलने वाला यह विशाल बल समस्या पैदा कर सकता है जो धरती के कई देशों को न केवल अंधेरे में डूबो देगा बल्की सबकुछ तबाह कर देगा। सौर तूफान के रेडियेशन के कारण धरती की ऊपरी सतह ज्यादा प्रभावित होती है। अल्ट्रावॉयलेट रेज की वजह से धरती की ऊपरी सतह का तापमान तेजी से बढ़ता है और तब धरती के कुछ हिस्सो पर गर्मी काफी बढ़ जाती है। गर्मी काफी बढ़ने के कारण समुद्र का जल तेजी से वाष्प बनने लगता है और तब मौसम में भी तेजी से बदलाव होता है।
 
सौर तूफान का असर रेडियो सिग्नल पर हो सकता है। कुछ देर के लिए ये काम करना बंद कर सकते हैं। जीपीएस पर असर पड़ सकता है। यह बिजली के बुनियादी ढांचे के साथ अंतरिक्ष में सैटेलाइट और यान को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इसी के साथ ही यह धरती के गुरुत्वाकर्षण बल और भूकंप को भी प्रभावित कर सकता है। इस सौर गतिविधि के कारण युद्ध हो सकते हैं, बीमारी हो सकती है मानसिक असंतुलन बढ़ सकता है। इन सौर ज्वालाओं के कारण इंसानों के जीवन में बहुत उथल-पुथल हो सकती है।
 
कहां पर तबाही मजाएगा ये सौर तूफान: यह सौर तूफान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और इसके बीच के सागर सहित यह ऑस्ट्रेलिया और चीन को नुकसान पहुंचा सकता है। फिलहाल जो सौर तूफानों के प्रभाव की रिपोर्ट अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों, यूरोप के पूर्वी हिस्से, मध्य अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और दक्षिण पूर्व एशिया में सौर तूफान का कहर कई जगहों पर महसूस किया जाने लगा है। 14 मई से ही सूर्य में फिस्फोट प्रारंभ हो चले थे। इसके बाद से उसका प्रभाव धरती पर हल्के रूप में देखा जा सकता है लेकिन अभी बाद में खास लपटों का आना बाकी है। यह उसी तरह है जैसे कि बारिश के आने की सूचना और सही में बारिश होने में अंतर होता है।

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